जयपुर। Makar Sankranti पर अधिकतर लोग पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं तो कई लोग अन्य खेल खेलते हैं। लेकिन, राजस्थान में एक ऐसी जगह भी जहां मकर संक्रांति पर पतंबाजी नहीं बल्कि 70 किलो वजनी गेंद से दड़ा खेल खेलते हैं। यह दड़ा खेल (Anwa Dada Khel) टोंक जिले के आंवा कस्बे में 300 वर्गमीटर के मैदान में खेला जाता है। मकर संक्रांति दड़ा खेल में 13 गांवों के हजारों खिलाड़ी भाग लेते हैं।
150 साल पुरानी है दड़ा खेल परंपरा
आंवा कस्बे में खेला जाने वाला दड़ा खेल (Anwa Dada Khel) आज से नहीं बल्कि 150 साल से खेला जा रहा है। दड़ा खेल विश्व प्रसिद्ध है जो हर साल खेला जाता है। आंवा में दड़ा खेल महोत्सव का आयोजन कस्बे के गोपाल चौक में किया जाता है जहां हजारों लोग इकट्ठे होकर इस खेल का आनंद लेते हैं।
यह भी पढ़ें : Makar Sankranti: 14 या 15 जनवरी, मकर संक्रांति मनाने का कंफ्यूजन करें दूर
खुशहाली का माना जाता है संकेत
दड़ा खेल को लेकर माना जाता है कि दड़ा यानि गेंद अगर दूनी दरवाजे की तरफ चली जाए तो इसका मतलब इस पूरे क्षेत्र में खुशहाली होगी। यही प्रार्थना को मन में लेकर हजारों दर्शक गोपाल चौक और गलियों की छतों जुटते हैं। इस खेल में 2 से तीन घंटे की खींच-तान के बाद दड़ा जब दूनी दरवाजे की तरफ चला है तो गांव का सरपंच घोषणा करता है कि यह साल इस क्षेत्र के लोगों के लिए खुशहाली भरा होगा तथा धन और धान्य से भरपूर रहेगा।
दड़ा खेलकर गांव वाले मनाते हैं खुशियां
दड़ा खेल के बाद 13 गांवों के लोग खुश होकर नारे लगाते हैं सच होगी दड़े की भविष्यवाणी, जमकर बरसेगा पानी, घर-घर होगी गुड धानी। सुनहरे भविष्य का यह संदेश देखकर ग्रामीण और किसान गोपाल चौक में जमा होकर नाच गान करके भगवान को धन्यवाद देते हैं।
दड़ा देखने पहुंचते हैं बाहर के लोग
टोंक जिले के आंवा कस्बे में दड़ा खेल देखने के लिए गोपाल चौक की चारों तरफ दुकानों और मकानों की छतों पर सुबह से ही लोग जमा हो जाते है जिनमें बच्चे व महिलाएं भी शामिल होती हैं। यह दड़ा अखनियां और दूनी दरवाज़े के बीच घूमता रहता है, लेकिन आखिर में यह किसी एक दरवाजे की तरफ जाता ही है। जब दड़ा दूनी दरवाजा गोल पोस्ट की तरफ़ चला जाता है तो सबके चेहरे खिल उठते हैं। दड़ा खेल देखने के लिए जयपुर, बीकानेर, बाडमेर, मुंबई, दिल्ली आदि जगहों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं और एक बड़ा मेला लग जाता है।
यह भी पढ़ें : पतंगबाजी के जयपुर उस्ताद अजीज खान, 74 की उम्र में भी जवान नहीं टिकते सामने
सुबह 11 बजे शुरू होता है दड़ा खेल
मकर संक्रांति के दिन आंवा कस्बे में दड़ा खेल सुबह 11 पूजा के साथ शुरू होता है। सुबह साढ़े 11 बजे पूर्व महाराजा जयेन्द्र सिंह के गढ़ में 70 किलो वजनी दड़े की सरपंच और राजपरिवार पूजा करते हैं। इस कार्यक्रम में क्षेत्र की हस्तियां पर नेतागण भी मौजूद रहते हैं। इसके बाद दड़ा खेल शुरू होता है जिसका रोमांच देखते ही बनता है।
पुराने कपड़ों से बनाया जाता है दड़ा
Makar Sankranti आंवा में खेला जाने वाला दड़ा खेल में उपयोग किया जाने वाला दड़ा पुराने कपड़ों से बनाया जाता है। फिर इन कपड़ों को बोरी के टाटा में लपेटकर रस्सियों से बांधकर गोल गेंद का रूप दिया जाता है। इस दड़े का वजन 70 किलो होता है जिसको फिर लोग इधर उधर धकेलते हैं।