Dharti Dhora Ri Lyrics in Hindi: बचपन में आप सबने एक राजस्थानी गीत बहुत सुनो होगा। धरती धोरां री, ई तो सुरगा नै सरमावै, ई पै देव रमन नै आवे…जी हां, याद आया कुछ, 7वीं कक्षा में ये कविता पढ़ाई जाती थी। महाकवि पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया जी का यह अमर गीत देश के कण-कण में आज भी गुंजायमान है। कन्हैयालाल सेठिया जी का यह कालजयी मायड़ भाषा गीत धरती धोरां री (Dharti Dhora Ri Lyrics in Hindi) पूरे देश में राजस्थान की मनोहर छवि पेश करता है। आज 21 फरवरी को विश्व मायड़ भाषा दिवस है, इस मौके पर आप अपने बच्चों को भी ये शानदार लोकगीत अवश्य सुनाए और खुद भी गुनगुनाए। वाकई में मिसरी सी मीठी बोली है राजस्थानी, जिसमें हर कोई अपना लगने लगता है।
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“धरती धोरां री”
धरती धोरां री
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै,
धरती धोरां री
काळा बादलिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै,
धरती धोरां री
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लुळ लुळ बाजरियो लैरावै,
मक्की झालो दे’र बुलावै,
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै,
धरती धोरां री
पंछी मधरा मधरा बोलै,
मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,
झीणूं बायरियो पंपोळै,
धरती धोरां री
नारा नागौरी हिद ताता,
मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !
ईं रै घोड़ां री के बातां ?
धरती धोरां री
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण,
ईं रै धीणो आंगण आंगण
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण,
धरती धोरां री
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,
ओ तो रण वीरां रो खूंटो,
ईं रे जोधाणूं नौ कूंटो,
धरती धोरां री
आबू आभै रै परवाणै,
लूणी गंगाजी ही जाणै,
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,
धरती धोरां री
ईं रो बीकाणूं गरबीलो,
ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो,
धरती धोरां री
जैपर नगर्यां में पटराणी,
कोटा बूंटी कद अणजाणी ?
चम्बल कैवै आं री का’णी,
धरती धोरां री
कोनी नांव भरतपुर छोटो,
घूम्यो सुरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो
धरती धोरां री
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,
मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्यां रो उणियारो,
धरती धोरां री
ईडर पालनपुर है ईं रा,
सागी जामण जाया बीरा,
अै तो टुकड़ा मरू रै जी रा,
धरती धोरां री
सोरठ बंध्यो सोरठां लारै
भेळप सिंध आप हंकारै,
मूमल बिसर्यो हेत चितारै,
धरती धोरां री
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां,
ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उडै गिगनारां,
धरती धोरां री
ईं नै मोत्यां थाल बधावां,
ईं री धूल लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां,
धरती धोरां री
ईं रै सत री आण निभावां,
ईं रै पत नै नही लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,
भायड़ कोड़ां री,
धरती धोरां री
तो मायड़ भाषा को अपने बच्चों को जरूर सिखाए, क्योंकि मातृभाषा में सीखना बहुत जरूरी है। हिंदी इंग्लिश अपनी जगह ठीक है लेकिन राजस्थानी जुबान को भी तवज्जो मिलनी चाहिए। किसी भी राज्य में चले जाए, वहा की लोकल लेंग्वेज को महत्व दिया जाता है, लेकिन हम राजस्थानी मायड़ भाषा (Mayad Bhasha Rajasthani) में बोलने से जाने क्यों कतराते है, या फिर शर्म महसूस करते है। आज 21 फरवरी को ये संकल्प ले कि आज से ज्यादा से ज्यादा राजस्थानी जुबान का इस्तेमाल करेंगे।