Islam Facts in Hindi:शबे बारात के बाद अब मुस्लिम बंधु रमजान की तैयारी में जुटे हैं। आपने कई बार मुसलमानों को कहते हुए सुना होगा कि अल्लाह रसूल ने ये फला बात कही है। कई लोगों के मुंह से नबी साहब का जिक्र भी सुना होगा। हम आपको नबी और रसूल दोनों में क्या अंतर है, ये खास जानकारी देने जा रहे हैं। चूंकि आए दिन आपने भी रसूल शब्द सुना तो होगा लेकिन कई लोगों के लिए ये लफ्ज अनजान सा होगा। Islam Facts in Hindi सीरीज में हम आपको नबी और रसूल में क्या फर्क (Nabi Rasool Difference) होता है, ये तथ्य बताने वाले हैं। कुरआन और हदीस की रोशनी में ये लेख लिखा गया है। हमारा उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करना नहीं है।
यह भी पढ़ें: Islam Facts in Hindi: इस्लाम में कितने पैगंबर हुए हैं, मुसलमान भी नहीं जानते, यहां पढ़ें सच्चाई
क्या फर्क है रसूल और नबी में?
कुरआन शरीफ में नबी और रसूल (Nabi Rasool Difference) दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। रसूल का अरबी में शाब्दिक अर्थ अल्लाह का संदेशवाहक अथवा मैसेंजर ऑफ़ गॉड होता है, जिसे अल्लाह की तरफ से शरीयत यानी इस्लामी कानून मिला हो। वही नबी शब्द का अर्थ केवल संदेशवाहक के तौर पर लिया जाता है। यानी नबी को पहले की शरीयत (Islam Facts in Hindi) पर ही अमल करना होता है। आखिरी नबी हजरत मुहम्मद नबी और रसूल दोनों थे। यानी नबी तो सारे 1 लाख चौबीस हजार हुए हैं, लेकिन रसूल केवल चंद अंबिया ही हुए हैं।
रसूल का मर्तबा ऊंचा होता है
इस्लाम (Islam Facts in Hindi) में रसूल का मर्तबा नबी से बड़ा रखा गया है। कहने का मतलब है कि हर रसूल आरंभ में नबी होता है और फिर रसूल के पद को प्राप्त करता है। लेकिन हर नबी रसूल नहीं हो सकता है। यही वजह है के दुनिया में एक लाख चौबीस हज़ार से भी ज़्यादा नबी आये मगर रसूल सिर्फ 313 हुए हैं। उनमें भी कुरआन में केवल 25 रसूलों का ही जिक्र हुआ है। वही 5 रसूल सबसे अजीम माने गए हैं।
यह भी पढ़ें: Ramadan 2024 Hindi: मस्जिदों में नहीं होगी इफ्तार पार्टी, पढ़ें सरकार का ये नया फरमान!
ये हैं इस्लाम के 5 बड़े रसूल
इस्लाम (Islam Facts in Hindi) के 5 सबसे बड़े अज़ीम रसूल की सूची में हज़रत नूह, हज़रत इब्राहिम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और आखिरी रसूल हजरत मुहम्मद साहब (Prophet Muhammad Sahab) का नाम शुमार है। इन सभी 5 बुलंद रसूलों ने अल्लाह से सीधे शरिया कानून हासिल किया था। कुरान के अनुसार पैगंबरे इस्लाम मुहम्मद साहब को मिली शरीयत ही कयामत तक चलेगी। यह शरीयत सबसे शुद्ध मानी गई है।