कभी तेल के बाजार पर अमेरिका का दबदबा रहता था। इसी के चलते उसने भारत पर ही नहीं कई देशों पर ऑयल खरीदने या ना खरीदने पर फरमान जारी किए थे। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय घटनाचक्र तेजी से बदल रहे हैं। भारत अब तेल खरीदने के लिए नहीं, तेल बेचने में सिर्फ पायदान पर आ रहा है। इस कड़ी में भारत ने सऊदी अरब को भी पीछे छोड़ दिया है
1 वर्ष से अधिक समय से चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया में भारत का किरदार भी बदला है। ऑयल खरीदने के मामले में 2022 में भारत चीन के बाद सेकंड पोजीशन पर था।
अमेरिका और यूरोप की दोगली नीति
पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत पर रूस से ऑयल खरीदने पर नाराजगी जताई जा रही थी। यही नहीं रूस से संबंधों पर भी बार-बार पुनर्विचार करने की हिमायती दी जा रही थी। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोप ने भारत पर प्रतिबंध लगाने की भी हिदायतें दी।
इधर रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध भारत के लिए भी फायदेमंद साबित हुए। भारत ने रूस से ऑयल का आयात किया। उसे रिफाइन किया और उसकी सप्लाई यूरोपीयन मार्केट में की। ऐसा करके भारत ने ना केवल विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की अपितु तेल बेचने में तेल निर्यातक सऊदी अरब को भी पीछे छोड़ दिया। भारत अब यूरोप को रोजना 5 करोड़ लीटर ऑयल बेच रहा है।
ऐसा कैसे हुआ?
कोरोना काल और रूस यूक्रेन युद्ध ने पूरी स्थितियों को बदल कर रख दिया। मार्च 2022 में क्रूड ऑयल की कीमत प्रति बैरल $140 पहुंच गई थी। उस समय अमेरिका ने कीमत कम करने के लिए क्रूड ऑयल का खजाना खोल दिया था। वैसे भी भारत रूस से सिर्फ 2% कच्चा तेरी आयात करता था। बाकी 60% खाड़ी देशों से आता।
लेकिन उसके बाद परिस्थितियां बदली और भारत में अमेरिका के प्रतिबंध के बाद भी तेल आयात जारी रखा। भारत में ऑल रिफाइंड करना सस्ता है। यहां बड़ी दिग्गज कंपनियां है जो इस कार्य में लगी है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, रिलायंस और बीपीसीएल इसमें शामिल है। अब भारत दुनिया की सबसे बड़ी ऑयल रिफायनरी देशों में शामिल हो गया है। यही वजह है कि यूरोपियन देशों को तेल बेचकर भारत ने अच्छा मुनाफा कमाया है।