जयपुर। Khatu Shyamji Mela 2024 : राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू गांव में हर साल Khatu Shyamji Mela लगता है जिसमें लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। खाटू श्यामजी को हारे का सहारा माना जाता है जिनका सीधा संबंध महाभारत से है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का कोई भी सहारा नहीं होता, उसका सहारा बाबा खाटू श्यामजी हैं। सीकर में खाटू श्यामजी मंदिर के पास लक्खी मेला लगता है जो 10 दिनों तक चलता है जो फाल्गुन महीने में शुरू होता है। इस खाटू श्यामजी मेला 12 से 21 मार्च तक लग रहा है। 21 मार्च को लक्खी मेले के आखिरी दिन बाबा श्याम का जन्मदिन मनाया जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं खाटू श्यामजी और उनके इस लक्खी मेले के बारे में खास बातें….
महाभारत से है खाटू श्यामजी का संबंध
आपको बता दें कि खाटू श्यामजी का सीधा संबंध महाभारत काल (Khatu Shyamji Connection with Mahabharat) से है। जब कौरव-पांडव युद्ध लड़ रहे थे तब उसकी सूचना भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक तक पहुंची तो उन्होंने अपनी माता से कुरुक्षेत्र में चल रहे युद्ध में शामिल होने के लिए कहा। उनकी यह बात सुनकर मां ने कहा कि बर्बरीक तुम असीम शक्तियों वाले हो ऐसे में अपनी शक्तियों का प्रयोग कभी भी किसी निर्बल पर मत करना या फिर उस दल पर मत करना, जो हार रहा हो। तुम हारे को ही सहारा देना। इसका मतलब ये हुआ महाभारत युद्ध जो पक्ष हार रहा हो उसी साथ बर्बरीक को देना था। मां की बात मानकर बर्बरीक युद्ध भूमि पहुंच गए। हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण को पता था कि युद्ध में कौन हारेगा। इस वजह से बर्बरीक कौरवों का साथ देने वाले थे। फिर क्या था बर्बरीक को कौरवों का साथ देने से रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर उनसे शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने ब्राह्मण देव से उनके असली रूप में आने को कहा तो श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आए। फिर क्या था बर्बरीक श्रीकृष्ण के दर्शन पाकर प्रसन्न हो गए और श्रीकृष्ण को फाल्गुन मास की द्वादशी के दिन उन्होंने अपना शीश काटकर दान में दे दिया।
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कलयुग में हारे हुए का सहारा हैं खाटू श्याम
बर्बरीक के बारे में श्रीकृष्ण जानते थे कि वो कितने शक्तिशाली योद्धा हैं। इसी वजह से उन्होंने बर्बरीक के शीश को उठाकर अमृत कलश में डाल दिया जिससें वो अमर हो गए। इसके बाद बर्बरीक ने पूरे युद्ध को देखने की इच्छा जताई जिस कारण श्रीकृष्ण ने उनके सिर को सबसे ऊंची पहाड़ी पर रख दिया, ताकि वो पूरे युद्ध को देख पाएं। इतना ही नहीं बल्कि बर्बरीक श्रीकृष्ण ने वरदानन दिया कि उन्हें कलियुग में श्याम नाम से पूजा जाएगा।
खाटू श्याम का मंदिर का इतिहास
कलियुग की शुरुआत में जमीन के नीचे से खाटू श्यामजी का सिर मिला था जिसके पीछे की एक कहानी है। माना जाता है कि जहां से श्याम बाबा का सिर मिला था, वहां एक गाय आती थी जिसके थन से उस स्थान पर अपने आप ही दूध निकलकर गिरता रहता था। लोगों ने जब इस पर ध्यान दिया और खुदाई की तो वहां से श्याम बाबा का सिर निकला जिसें एक पुरोहित को सौंपा गया। फिर राजस्थान के तत्कालीन राजा रूप सिंह को उस स्थान पर मंदिर बनवाने का सपना आया जिसके बाद वहां पर श्याम बाबा का मंदिर बनवा दिया गया।
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खाटू श्यामजी मंदिर का इतिहास और महत्व
सीकर में स्थित खाटू श्यामजी मंदिर को राजा रूप सिंह ने 1027 ईस्वीं में बनवाया था। फिर 1720 ई. के आसपास देवान अभय सिंह ने इस मंदिर में कुछ बदलाव कराते हुए पुनर्निमाण कराया। यह मंदिर पत्थरों और संगमरमर से बनाया गया है जिसके बाहर बाहर एक प्रार्थना कक्ष है। इस मंदिर में एक कुंड भी है, जहां लोग स्नान करते हैं। खाटू श्यामजी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करे इसके लिए लोग यहां पर चुन्नी और धागे बांधकर कामना भी करते हैं।
खाटू श्यामजी के लक्खी मेले में ये होता है खास
खाटू श्यामजी के लक्खी मेले में हर बार काफी तैयारियां की गई हैं। श्याम बाबा के मंदिर को फूलों से सजाया जाता है और श्याम बाबा का भी श्रृंगार किया जाता है। खाटू श्यामजी का श्रृंगार गुलाब, चमेली और गेंदे के फूलों सहित सुंदर वस्त्रों से भी किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि फाल्गुन मास में खाटू श्यामजी को गुलाल भी चढ़ाई जाती है। साथ ही खाटू श्याम बाबा को मिठाई, गुजियां और खाने-पीने की चीजों का भी भोग लगाया जाता है।
खाटू श्यामजी मंदिर पहुंचने का तरीका
राजस्थान के सीकर में लगने लगने वाले खाटू श्यामजी लक्खी मेले में जाने के लिए जयपुर जाना होगा। जयपुर से खाटू श्याम मंदिर 80 किलोमीटर दूर खाटू गांव में है। यहां पर रिंगस रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक पड़ता है। यहां से आप टैक्सी या जीप की सहायता से खाटू धाम पहुंच सकते हैं। यदि आप अपनी गाड़ी से दिल्ली या आसपास की जगहों से खाटू श्यामजी जा रहे हैं तो 5-6 घंटे का समय लग सकता है।