जयपुर। Black Money यानि काला धन एक ऐसी चीज है जो आज के समय में हर किसी के पास मिल भी सकता है। यह ऐसा पैसा होता है जो सरकार की नजर में नहीं होता, लेकिन लोगों कि तिजोरियों भरा रहता है। ऐसे में काले धन को बाहर लाने के लिए लोगों के यहां आईटी, ईडी आदि का छापा पड़ता रहता है। छापा पड़ने के बाद बरामद होने वाली रकम सरकार जब्त कर लेती है। ऐसे में यदि किसी के पास काला धन है तो चुनावों का समय ही ऐसा होता है जब वो उसें सफेद करने की योजना बनाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि चुनावों के दौरान ब्लैक मनी कैसे व्हाइट होती है।
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लोकसभा चुनाव 2024 में खर्च हांगे 1.2 लाख करोड़ रूपये
गौरतलब है कि भारत में लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा हो चुकी है। ऐसे में इन चुनावों के दौरान सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अनुमान के मुताबिक 1.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक पैसा खर्च हो सकता है। यह रकम रकम अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति चुनाव में हुए खर्च से अधिक होगी। ऐसे खर्चों की फंडिंग के लिए भारत समेत दुनिया के कई देशों में अलग—अलग व्यवस्था है।
चुनावों के दौरान ऐसे होता है कालाधन सफेद
चुनावों के दौरान जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत राजनीतिक दल लोगों से चंदा लेते हैं। चंदा देने वालों को इस रकम पर पूरी टैक्स छूट मिलती है। इसके अलावा इलेक्टोरल ट्रस्ट और दूसरे तरीकों से कई कंपनियां भी पार्टियों को चंदा देती हैं। कंपनीज ऐक्ट सहित कई नियमों के तहत इसको रेगुलेट किया गया है। आपको बता दें कि 2017 में चुनावी बॉण्ड की व्यवस्था शुरू हुई थी जिसको अब सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। हालांकि, चुनावी उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा है, लेकिन ऐसी कोई लिमिट पार्टियों के लिए नहीं है। इसी दौरान कई लोग अपना काला धन चुनाव के दौरान पार्टियों को देकर उसें व्हाइट कर लेते हैं।
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चुनावी खर्च को लेकर निर्वाचन आयोग के सुझाव
1994 से लेकर 2012 के बीच चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार को लेकर अब तक 6 बार विस्तृत प्रस्ताव भेजे हैं, परंतु हर बार यह बात प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ सकी। इन प्रस्तावों में राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट डोनेशन बंद करना, नैशनल इलेक्शन फंड के तहत सभी राजनीतिक दलों को स्टेट फंडिंग यानी सरकार से फंडिंग करना, सरकार चुनाव लड़ने के लिए कुछ जरूरी सामानों पर सब्सिडी दे जिससे खर्च पर अंकुश लगे आदि शामिल है।