हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार का विशेष महत्व होता है। हर महीने आने वाली पूर्णिमा का अलग-अलग महत्व होता है लेकिन ज्येष्ठ माह में आने वाली पूर्णिमा को सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है। ज्येष्ठ माह में आने वाली पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री का व्रत रखती है। पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है वहीं अमांता कैलेंडर के अनुसार इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाते है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता है। तो जानते हैं इस व्रत के पीछे की कहानी, पूजा विधि, और शुभ मुहूर्त के बारे में।
क्यों किया जाता है वट पूर्णिमा व्रत
पौराणिक कथाओं के अनुसार महान सावित्री ने मृत्यु के देवता यम से आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस आशीर्वाद के बाद सावित्री ने अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस लाने के लिए यम देवता को मजबूर कर दिया था और अपने पति को फिर से पाया था। इसलिए सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का व्रत करती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। जिस तरह बरगद का पेड़ सैंकड़ों सालों तक चलता है उसी तरह विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु चाहती है।
पूजन विधि
महिलाएं व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर सोलह श्रृंगार करें। शाम के समय पूजन की सारी सामग्री लेकर बगरद के पेड़ के नीचे पूजा करने जाएं। वहां वृक्ष को भोग लगाकर धूप-दीपक दिखाना चाहिए। पूजा के बाद वट वृक्ष पर पंखे से हवा करें। उसके बाद पति की लंबी आयु के लिए कामना करते हुए वृक्ष के चारों तरफ मोली को 7 बार बांधे। अंत में वृक्ष के नीचे बैठकर कथा सुनें। घर आकर उसी पंखे से पति को हवा करें और प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलें।
शुभ मुहूर्त
3 जून यानि आज वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत रखा जा रहा है। इस अवसर पर 3 शुभ योग बन रहे है। पहला शिव योग जो 2 जून को शाम से शुरु हो गया। दूसरा रवि योग जो आज सुबह 5 बजकर 23 मिनट से 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। तीसरा सिद्ध योग जो दोपहर 2.48 से 4 जून को सुबह 11.59 तक रहेगा।