Hanumanji Stories: शास्त्रों में हनुमानजी का परम रामभक्त और भक्तों के समस्त कष्ट हरने वाला बताया गया है। किंवदंतियों और कहानियों में भी उनके बुद्धि बल और शारीरिक बल का बखान किया गया है। वाल्मिकी रामायण में भी ऐसा ही एक प्रसंग बताया जाता है जिसमें भगवान राम मां सीता से बजरंग बली की प्रशंसा करते हैं। प्रसंग कुछ इस प्रकार हैं
यह है पूरी कथा
एक समय भगवान राम ने सीताजी से कहा कि यदि हनुमान न होते तो मैं आज भी सीता वियोग में ही दुखी रहता। इस पर सीताजी ने उनसे कहा, ‘भगवन आप सदैव हनुमान की प्रशंसा करते हैं, परन्तु एक ऐसा प्रसंग बताइए जब उन्होंने अपने बुद्धि बल से लंका विजय दिलाने में सहायता की।’ इस पर भगवान राम ने कहा कि लंका युद्ध के अंत में रावण के सभी महायोद्धा मारे जा चुके थे, वह अकेला बचा हुआ थै, ऐसे में उसने मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए चंडी महायज्ञ का आयोजन किया।
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यज्ञ आरंभ होते ही वानर सेना में भी खलबली मच गई। उसी समय हनुमानजी यज्ञ को नष्ट करने की इच्छा करते हुए एक ब्राह्मण का रुप धरकर यज्ञस्थल पर पहुंचे। वहां मंत्र अनुष्ठान कर रहे ब्राह्मणों की सेवा करने लगे। ब्राह्मण रुप धारी हनुमान की सेवा से प्रसन्न ब्राह्मणों ने उनसे वर मांगने का आग्रह किया जिस पर हनुमान ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया। परन्तु बार-बार उनके आग्रह करने पर हनुमान ने उनसे एक ऐसा वरदान मांगा जिसकी वजह से देवी ने रावण का समूल नाश कर दिया। ब्राह्मणों ने भी उन्हें मनचाहा वरदान देते हुए मंत्र में एक अक्षर को बदल दिया और देवी ने शत्रु को नष्ट करने के बजाय उन्हें ही नष्ट कर दिया।
प्रसंग सुन रही सीताजी ने उत्सुकतना से पूछा कि हनुमान ने ऐसा क्या वरदान मांगा। इस पर भगवान राम ने उन्हें बताया कि चंडी महायज्ञ में एक मंत्र का जप हो रहा था, उसी मंत्र में एक अक्षर बदल कर उसका जप करने का वरदान हनुमान ने मांगा और ऐसा करते ही देवी ने रावण को नष्ट कर दिया। इस पर सीताजी ने मंत्र और मंत्र में क्या फेरबदल हुआ, यह पूछा। भगवान राम ने उन्हें मंत्र बताया
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥
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ऐसे हुआ मंत्र से अर्थ का अनर्थ
हनुमानजी ने इस मंत्र में “भूतार्तिहारिणि” मे “ह” के स्थान पर “क” का उच्चारण करने का हनुमान ने वर मांगा। भूतार्तिहारिणि का अर्थ है, “संपूर्ण प्रणियों की पीड़ा हरने वाली और “भूतार्तिकारिणि” का अर्थ है प्राणियों को पीड़ित करने वाली।” इस प्रकार एक अक्षर बदलने से ही पूरे मंत्र का अर्थ बदल गया औऱ रावण को विजय के स्थान पर विनाश का सामना करना पड़ा। इस कथा को सुनकर मां सीताजी अत्यन्त प्रसन्न हुई।