नवरात्रि में नवदुर्गाओं के अलावा देवी के दस महाविद्या स्वरूपों की भी पूजा की जाती है।

प्रथम महाविद्या काली है जिनकी पूजा सात्विक और तामसिक दोनों तरह से होती है।

दूसरी महाविद्या तारा है जिनकी पूजा से मोक्ष प्राप्त होता है।यह श्मशान में रहती है।

तीसरी महाविद्या छिन्नमस्ता है जो अत्यन्त उग्र हैं,ये भक्तों के समस्त दुख हर लेती है।

चतुर्थ महाविद्या षोडशी है, इनकी उपासना से भक्तों को भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं।

पंचम महाविद्या भुवनेश्वरी है जो भगवान शिव और श्रीहरि की आराध्य देव है।

छठी महाविद्या त्रिपुरभैरवी है जो समस्त जगत के आदि और अंत का कारण है

सप्तम महाविद्या धूमावती है, श्मशानवासिनी मां हर तरह के तंत्र-मंत्र को नष्ट कर देती हैं।

अष्टमी महाविद्या बगलामुखी है, इनकी आराधना से बड़े से बड़ा शत्रु भी  परास्त हो जाता है।

नवम महाविद्या मातंगी है जो मां लक्ष्मी का ही रूप है। ये विद्या और धन की दात्री देवी हैं।

दशम महाविद्या कमला है, यही षोड़शी भी है। इनकी आराधना भोग और मोक्ष दोनों देती है।