जयपुर। Kafala System : हाल ही में खाड़ी कुवैत की एक इमारत में आग लगने की वजह से भारतीय मजदूरों में मरने वालों की संख्या 41 पहुंच चुकी है। ये मजदूर इस मुस्लिम देश में अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए गए थे, लेकिन बलि चढ़ गए। हालांकि, उनकी यह हालत खाड़ी देशों में प्रचलित ‘कफाला’ सिस्टम की वजह से हुई है क्योंकि इसी सिस्टम के तहत उनकी नियुक्ति हुई थी। इस सिस्टम में नौकरी देने वाले नियोक्ताओं को अपने कामगारों को काम में लेने के लिए असीमित अधिकार दे देता है। इसी का फायदा उठाकर नौकरी देने वाले नियोक्ता उनके साथ सारी जुल्म की सारी हदें पार करते हुए अमानवीय व्यवहार करते हैं। इसका सीधा सा मतलब ये है कि कफाला सिस्टम की वजह से मजदूर नियोक्ताओं के गुलाम बनकर रह जाते हैं।
ये होता है कफाला सिस्टम
खाड़ी देशों में ‘कफाला सिस्टम’ काफी पुराना है जो कि एक कानूनी प्रणाली है। इन देशों में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत और ओमान आदि शामिल है जहां विदेशी कामगारों का इसी प्रक्रिया के तहत नौकरी दी जाती है। हालांकि, इराक, जॉर्डन और लेबनान यह प्रणाली नहीं अपनाते।
इसलिए बनाया गया था कफाला सिस्टम
खाड़ी में मौजूद मुस्लिम देशों ने तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास के युग में सस्ते, प्रचुर मात्रा में श्रम की आपूर्ति करने के लिए कफाला सिस्टम बनाया था। इस सिस्टम को लागू करने वाले देशों का मानना है कि इसकी वजह से स्थानीय उद्यमों को फायदा होता है जिससें देश के विकास की गति बढ़ती है। जबकि इसके विरोधियों का कहना है कि यह प्रणाली शोषणयुक्त है जिसमें प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिए नियमों और सुरक्षा बेहद कम होती है। इसी वजह से उन्हें कम वेतन, खराब कामकाजी परिस्थितियों और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि उनके साथ नस्लीय भेदभाव और लिंग आधारित हिंसा भी होती है।
ऐसे काम करता है कफाला सिस्टम
कफाला सिस्टम के जरिए खाड़ी देशों की सरकारें स्थानीय व्यक्तियों या कंपनियों को विदेशी मजदूरों को अपने यहां काम पर रखने के लिए स्पॉन्सरशिप परमिट देती है। इस परमिट के जरिए कंपनियां हायरिंग एजेंसीज के हत दूसरे देशों से सस्ते श्रमिक काम पर रखती हैं। ऐसे लोगों के मूल देश से आने-जाने और रहने का इंतजाम प्रायोजक कंपनी करती है। खाड़ी देशों में कफाला सिस्टम श्रम मंत्रालयों की बजाए आंतरिक मंत्रालयों के अंतर्गत आता है। इस वजह से इन देशों में श्रमिकों के लिए बने कानूनों और योजनाओं का उनको कोई लाभ नहीं मिल पाता। उनको नौकरी देने वाले प्रायोजकों के पास यह अधिकार होता है कि वो चाहें तो विदेशी कामगारों का कॉन्ट्रेक्ट आगे बढ़ाएं या फिर बीच में ही खत्म कर सकते हैं।
बिना परमिशन नहीं छोड़ सकते नौकरी
कफाला सिस्टम की वजह से खाड़ी देशों में मजदूर अपनी जॉब छोड़कर अपने देश वापस नहीं आ सकता। बिना प्रायोजक कंपनी की आज्ञा के कार्यस्थल छोड़ने पर मजदूर को गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके पीछे कारण चाहे उसके साथ दुर्व्यवहार ही क्यों न हो। श्रमिकों के पासपोर्ट नौकरी देने वाली कंपनियां अपने पास रख लेती हैं, जिससे वो कैद होकर रह जाते हैं।
अकेले कुवैत में 33 लाख से ज्यादा विदेशी
खाड़ी देश कुवैत की बात करें तो वहां की कुल जनसंख्या 48 लाख है, जिसमें 33 लाख से अधिक विदेशी हैं। इनमें से 10 लाख भारतीय मजदूर हैं जो कि कुवैत की कुल वर्कफोर्स का करीब 30 प्रतिशत है। यहां पर काम करने वाले अधिकतर विदेशी कामगार ऑयल रिफाइनरी, सड़क, बिल्डिंग, होटल निर्माण में मजदूरी करते हैं।
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