Duryodhana Temple: देवताओं की भूमि केरल अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। केरल में ही दुर्योधन का भी मंदिर है जो अपने आप में बहुत अनोखा है और यहां पर भगवान दुर्योधन स्थानीय सरकार को टैक्स भी देते हैं। इस मंदिर के पीछे की कहानी भी बड़ी विचित्र बताई जाती है।
क्या है दुर्योधन मंदिर की पूरी कहानी
महाभारत युद्ध से बहुत पहले राजकुमार दुर्योधन यात्रा के दौरान एक गांव से गुजर रहे थे। उस समय वे बहुत ज्यादा थक गए और उन्हें प्यास भी लगने लगी। ऐसे में गांव की ही एक निम्न जाति की स्त्री ने उन्हें प्यास बुझाने के लिए ताड़ी दी। दुर्योधन ने उस ताड़ी को स्वीकार कर लिया और प्रसन्न होते होते महिला और गांव को पुरस्कारस्वरूप भूमि दी। उनके द्वारा दी गई भूमि पर ही ग्रामीणों ने एक मंदिर का निर्माण किया। मंदिर को पेरूविरुधी मलानाडा मंदिर का नाम दिया गया है।
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दुर्योधन को चढ़ता है ताड़ी का भोग
इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं रखी गई है बल्कि दुर्योधन का पसंदीदा गदा रखी हुई है। यहां पर दुर्योधन को अपूपा (दादा) कहा जाता है और प्रतिदिन ताड़ी का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि ताड़ी चढ़ाने से देवता शांत और प्रसन्न रहते हैं एवं ग्रामीणों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
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सरकार को टैक्स भी देते हैं दुर्योधन महाराज
इस मंदिर की सबसे खास बात है कि मंदिर प्रशासन स्थानीय सरकार को टैक्स भी देती है। यह टैक्स दुर्योधन के नाम पर ही भरा जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि मंदिर के अन्तर्गत आने वाली 15 एकड़ भूमि पर टैक्स लगता है। इस 15 एकड़ भूमि में आठ एकड़ भूमि पर धान उगता है बाकी क्षेत्र वन भूमि है। मंदिर का स्वामित्व दुर्योधन के नाम से होने के कारण टैक्स भी दुर्योधन के नाम पर ही चुकाया जाता है।
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