जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में Indian Army के एक फौजी को पुलिस द्वारा नंगा करके पीटा गया। इस घटना को लेकर मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने संज्ञान लेते हुए शिप्रा पथ थाने में जाकर मामले का जायजा लिया। इसमें सामने आया कि भारतीय सेना के एक सेवारत सैनिक को कथित तौर पर निर्वस्त्र कर पीटा गया जिसको लेकर मंत्री ने पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई। यह चौंकाने वाला मामला सामने आने के बाद एक पुलिस उपनिरीक्षक और 3 कॉन्स्टेबलों को थाने से हटाकर पुलिस लाइन भेज दिया गया और उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए। गौरतलब है कि सैनिक कल्याण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ भी सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। मंत्री ने थाने पहुंचकर मामले पर आपत्ति जताई और मौजूद अधिकारियों को फटकार लगाई। ऐसे में आइए जानते हैं पुलिस और सेना के नियम…
पुलिस फौजी को अरेस्ट कर सकती है या नहीं
पुलिस का काम जनता को सुरक्षित रखना है, लेकिन कई बार पुलिस अधिकारी कानून तोड़ देते हैं। जयपुर की घटना के बाद सवाल उठे हैं कि क्या पुलिस के पास Indian Army फौजी को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है? तो इसका जवाब हां और नहीं दोनों है। दरअसल, इसको लेकर अलग-अलग नियम हैं। आर्मी और पुलिस दो अलग-अलग सरकारी विभाग हैं और उनके अपने-अपने कार्यक्षेत्र और दायित्व होते हैं। पुलिस और आर्मी दोनों के पास अपनी कानूनी प्रक्रियाएं होती है और वे अपने कार्यक्षेत्र में गिरफ्तारी के विशेष नियमों और गाइडलाइंस का पालन करते हैं।
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फौजी को पुलिस कब गिरफ्तार कर सकती है?
SSB Crack Exams की रिपोर्ट के मुताबिक Indian Army एक्ट 1950 के सेक्शन 70 और एयरफोर्स एक्ट के सेक्शन 72 में इसका उल्लेख है। नियम के अनुसार आर्मी पर्सनल्स को सिर्फ और सिर्फ बड़े जुर्म जैसे मर्डर, रेप या किडनैपिंग के मामले में अरेस्ट किया जा सकता है। जघन्य अपराधों के अलावा किसी अन्य मामलों में गिरफ्तारी के लिए पुलिस को केंद्र सरकार से परमिशन लेनी होती है। साथ ही आर्मी के जवान को हथकड़ी पहनाने की भी परमिशन नहीं है। यह भी नियम है कि किसी भी Indian Army अफसर को गिरफ्तारी के बाद 2 घंटे से अधिक समय के लिए पुलिस थाने में नहीं रखा जा सकता। क्योंकि पुलिस द्वारा तुरंत प्रभाव से नजदीक के मिलिट्री हेडक्वार्टर को सूचित करना होता है और सेना के अधिकारियों से आगे की कार्रवाई की अनुमति लेनी होती है। यह परमिशन मेजर जनरल या उससे ऊपर के रैंक वाले स्टेशन कमांडर द्वारा दी जाती है। अगर अनुमति नहीं दी जाती है तो जवान को मिलिट्री पुलिस को सौंपना होता है। इसके अलावा पुलिस सिर्फ सिविल मामले में ही सेना के जवान से पूछताछ कर सकती है। अगर जुर्म में शामिल दोनों पक्ष सेना में शामिल हों तो ये मामला मिलिट्री कोर्ट में जाता है।