जयपुर। नवरात्रि पर्व इस साल अद्भुत संयोग लेकर आ रहा है। माना जा रहा है कि 110 साल बाद इस प्रकार का संयोगग बन रहा है। जो ग्रह नक्षत्रों के हिसाब से मनुष्यों पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़कर जाएगा। सभी मनोकामनाओं, अभिलाषाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला नवरात्रि पर्व ना केवल आशा का संचार करता है। अपितु मनुष्य को निरोगी और दीर्घायु भी बनाता है। देवी उपासना के विशेष काल में मनुष्य रोग, दरिद्रता से मुक्त होकर सुख, समृद्धि और वैभव पूर्ण जीवन प्राप्त कर सकता है।
भक्तों की नैया पार करवाने मां भगवती इस बार नौका पर सवार है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार का नवरात्रि विशेष फलदाई होगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर का प्रारंभ होकर मां के नौ रूप प्रगट होंगे। मां के इन विभिन्न रूपों का वर्णन हमारे शास्त्रों और ग्रंथों में भी मिलता है। आइए जानते हैं मां के नौ रूप कौन-कौन से हैं?
मां का प्रथम रूप मां शैलपुत्री
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री है। माता वृषभ पर सवार है। दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल सुशोभित होता है। शांत, मनोरम छवि वाली माता की आराधना तथा व्रत, उपवास से नवरात्रि का प्रारंभ होता है। भक्त यदि संपूर्ण 9 दिनों की नवरात्रि नहीं भी कर सके तो प्रथम और अंतिम नवरात्रि करके भी माता को प्रसन्न कर सकते हैं।
भोग
कहा जाता है कि नवरात्रि में जो भी भक्त शुद्ध सात्विक मन से मां की आराधना करता है उसके जीवन में सुख शांति और समृद्धि का उद्भव होता है। नवरात्रि के पहले दिन माता को गाय के घी का भोग लगाना चाहिए। जिससे आरोग्य की प्राप्ति हो।
भोग के साथ ही माता की पूजा में मंत्र का भी विशेष महत्व है। इस दिन जिस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए वह है।
ओम देवी शैलपुत्री नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है।
धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने कठिन और कठोर तप किया था। तभी वे ब्रह्मचारिणी कहलाई।
माता के बाएं हाथ में कमंडल तथा दाहिने हाथ में माला है। सदाचार और संयम प्रदान करने वाली माता का स्वरूप साधक में सदगुणों की वृद्धि करता है। अत्यंत ज्योतिर्मय यह स्वरूप मन और आत्मा को निर्मल, पवित्र करने वाला तथा भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाएं को पूरा करने वाला है।
भोग
मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाया जाता है। जिससे चिरायु का वरदान प्राप्त होता है।
मंत्र
ओम देवी ब्रह्मचारिणी नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
चंद्रघंटा देवी
नवरात्रि के तीसरे स्वरूप में मां चंद्रघंटा देवी अवतरित होती है। इस स्वरूप में मां के मस्तिष्क पर अर्धचंद्र शोभायमान होता है। इनके घंटे की ध्वनि से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। इसीलिए इसे चंद्रघंटा माता भी कहते हैं। इनका स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है। मान्यता यह भी है कि माता में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की सम्मिलित शक्तियों का निवास है। सच्चे मन से मां को स्मरण करने वाले भक्तों की माता सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।
भोग
माता को इस रूप में भक्त दूध का भोग लगाते हैं। ऐसा करने से धन वैभव तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
माता का मंत्र।
ओम देवी चंद्रघंटा नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
चौथा रूप कुष्मांडा माता
माता नवरात्रि के चतुर्थ दिन कुष्मांडा कहलाती हैं। मंद मंद मुस्कान बिखेरती माता की निर्मल हंसी से ही ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। मां की उर्जा का शक्ति का स्वरुप ही सृष्टि के अंधकार का नाश करता है। सृष्टि के संचार और सर्जन की देवी मां कुष्मांडा 8 भुजा धारी है। इनके एक हाथ में धनुष तथा अन्य हाथ में कमल, अमृत, चक्र, गदा, कमंडल और माला धारण किए हुए माता शेर पर सवार है।
अत्यंत मनोहारी यह रूप मनुष्य को भवसागर से उतारने तथा लौकिक से परालौकिक उन्नति प्रदान करने वाला अद्भुत स्वरूप है।
भोग
कुष्मांडा माता को मालपुआ नैवेद्य में अर्पित किया जाता है। यह मनुष्य के मनोबल बढ़ाने वाला व्रत है।
मंत्र
ओम देवी कुष्मांडायै नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
स्कंदमाता
स्कंदमाता नवरात्रि के पांचवे स्वरुप में प्रगट होने वाली, भक्तों का कल्याण करने वाली स्कंदमाता साक्षात माता का स्वरूप है । क्योंकि इस अवतार में माता की गोद में कार्तिकेय बैठे हैं । कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है ।
माता का यह ममतामयी स्नेही स्वरूप मनमोहक और अद्भुत है । चार भुजा धारी माता की दो भुजाओं में कमल सुशोभित होते हैं । वहीं एक हाथ वरदान की मुद्रा में है । तथा चौथे हाथ में स्कंध पुत्र को थामे है ।
सभी भक्तों पर कल्याण करने वाली माता जगत माता का यह स्वरूप निर्मल कोमल और आशा का संचार प्रकट करता हुआ दिखाई देता है ।
भोग
भोग में माता को केले का भोग लगाया जाता है। इस दिन व्रत और भोग लगाने से मनुष्य की सकारात्मक बुद्धि का विकास होता है ।
मंत्र
ओम देवी स्कंदमातायै नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां कात्यायनी ।
माता के छठे रूप को कात्यायनी कहा जाता है। माता कात्यायनी के बारे में मान्यता है कि ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर वे उनके यहां पुत्री के रूप में अवतरित हुई थी ।
चार भुजा धारी माता की दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयु मुद्रा में रहता है। वही नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है । बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में मां ने तलवार धारण की है तो नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित होता है ।
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी है । सिंह पर सवार मां आलोकिक तेज से प्रकाशमान होती हुई प्रतीत होती हैं । इनकी साधना और आराधना से मनुष्य भी आलोकिक तेज की प्राप्ति कर सकता है ।
भोग
इस रूप में मां को शहद का भोग लगाया जाता है । जो मनुष्य की नकारात्मक उर्जा को समाप्त करता है ।
मंत्र
ओम देवी कात्याये नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
कालरात्रि
सप्तम स्वरूप की अधिष्ठात्री मां कालरात्रि है । सप्तम तिथि को आने वाली कालरात्रि स्वरूप अत्यंत प्रचंड और विकराल रूप धारण किए हुए हैं । किंतु मां भक्तों के लिए सदा हितकारी और फलदायी है । तभी इसे शुभडकरी भी कहा जाता है ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार राक्षस रक्तबीज का संहार करने के लिए माता ने इस स्वरूप का वर्णन किया, राक्षस का संहार करने हेतु माता को प्रचंड रूप धारण करना ही पड़ा । भयमुक्त वातावरण बनाने वाली माता का संदेश अधर्म का नाश, धर्म की स्थापना में विशेष महत्व रखता है। जब जब धरती पर दुष्ट, राक्षसों की वृद्धि होती है, तब तब माता को ऐसे रूपों का वरण करना पड़ता है । यही रूप मां कालरात्रि का है ।
भोग
इस सिंह पर सवार माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है । मान्यता है कि यह दुख, शोक से मुक्ति के लिए विशेष फलदायी है ।
मंत्र
ओम देवी कालरात्रै नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
महागौरी
माता के आठवें अवतार को महागौरी कहा जाता है । मान्यता है कि इसी दिन माता को भगवान शिव पति रूप में प्राप्त हुए थे । उनकी कठोर और कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने माता को गौर वर्ण का वरदान दिया । शायद इसलिए क्योंकि कठोर तपस्या से माता का शरीर अत्यंत दुर्बल और काला पड़ गया था ,उन्हें उनका वास्तविक स्वरूप इसी दिन वरदान स्वरुप में प्राप्त हुआ । महागौरी श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण किए हुए हैं । इसलिए उन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। चार भुजा धारी माता के दाहिने ओर का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है । वही नीचे वाले हाथ में मां ने त्रिशूल धारण किया है। बाई ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू है । तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। श्वेत वस्त्र धारण माता श्वेतांबरधरा अमोघ फल दायिनी है । अष्टमी तिथि को आने वाली मां महागौरी भक्तों को विशेष फलदायी वरदान देती हैं । जो इन्हें पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से पूजता है । उनकी समस्त मनोकामनाएं को वे पूरा करती हैं ।
भोग
माता के इस रूप को नारियल का भोग अर्पित किया जाता है । समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माता का यह रूप अत्यंत रमणीय और सुंदर है ।
मंत्र
ओम देवी महागौरी नमः।
या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
माता सिद्धिदात्री ।
समस्त सिद्धियों की अधिष्ठात्री माता का यह रूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि की नवमी सिद्धिदात्री कहलाती है। शव को शिव और शिव को शव बनाने वाली मां सिद्धिदात्री ही है। समस्त चराचर जगत को अपनी अनुकंपा से जागृत और सचेत करने वाली ,शिव का आधा स्वरूप शिवा यही है । यही कमल के फूल पर विराजती हैं । कमल पर सुशोभित माता की उपासना भक्तों के समस्त दुखों ,कष्टों को हर लेती है । समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाली माता सिद्धिदात्री समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने वाली है ।
भोग
इस दिन पूरे विधि विधान से माता को भोग चढ़ाया जाता है । हलवा पूरी के भोग के साथ-साथ नैवेद्य रोली-मोली ,अक्षत और विभिन्न फलों से मां को भोग चढ़ाया जाता है । अधिकांश घरों में इस दिन 9 कन्याओं को भोजन करवाया जाता है । उन्हें दक्षिणा तथा माता का श्रृंगार भेंट किया जाता है।