Ganesh Avatar in Kalyug : प्रथम पूज्य भगवान गणेशजी को बुद्धि-विद्या और सभी सिद्धियों का दाता माना गया है। प्रथम पूज्य होने के चलते ही शुभ-मांगलिक कार्यों के आरंभ से पहले इन्हीं का पूजन किया जाता है। गणेशजी के जन्म को लेकर विभिन्न कथाएं (Ganesh Janam Katha) हैं। सनातन हिंदू धर्म (Hindu Dharma) में भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि (Ganesh Chaturthi) को भगवान गणेशजी की जन्मतिथि मानी जाती है और इसी दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भगवान गणेश ने अलग—अलग स्वरूप में अवतार लिए थे और अब कलियुग में वो धूम्रकेतु के रूप में अवतार लेंगे। ऐसे में आइए जानते हैं कि गणेशजी का धूम्रकेतु कैसा होगा और वो ये अवतार क्यों लेंगे।
गणेशजी इस वजह से लेंगे धूम्रकेतु अवतार
— गणेश पुराण के अनुसार, जब ब्राह्मणों का ध्यान वेद अध्ययनों से हटकर अन्य कार्यो में लग जाएगा। पृथ्वी पर तप, जप, यज्ञ और शुभ कार्य बंद हो जाएंगे तब धर्म की रक्षा हेतु गणेशजी का धूम्रकेतु अवतार (Ganesh Avatar in Kalyug) होगा।
— जब विद्वान लोग मूर्ख बन जाएंगे और एक दूसरे धोखा देकर लालचवश मुनाफा कमाएंगे। साथ ही पराई स्त्रियों पर बुरी दृष्टि रखेंगे और कमजोर लोगों पर बलवान का शोषण करेंगे तक गणेशजी यह अवतार लेंगे।
— लोग जब कलियुग में धर्म के मार्ग से हटकर देवताओं की बजाय दैत्यों या आसुरी शक्तियों की पूजा करेंगे तब गणेशजी धूम्रकेतु अवतार लेंगे।
— कलियुग में जब स्त्रियां अवगुणी होकर पतिव्रता धर्म छोड़कर धन आदि के लिए अधर्म का रास्ता अपना लेंगी, गुरुजन, परिजन और अतिथियों का अपमान करेंगी तब यह अवतार (Dhumraketu Ganesh) होगा।
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कलियुग में गणेशजी का धूम्रकेतु अवतार स्वरूप ऐसा होगा
गणेश पुराण के अनुसार कलियुग के अंत में भगवान गणेश का अवतार होगा, जिसका नाम धूम्रकेतु या शूपकर्ण होगा। समाज में फैली बुराईयों, अधर्म और कुरीतियों को दूर करने के लिए गणेशजी यह अवतार लेंगे। धूम्रकेतु भगवान के हाथ में खड्ग होगा और चारभुजा युक्त होकर नीले रंग के घोड़े में सवार होकर पापियों का नाश कर फिर से सतयुग का सूत्रपात करेंगे।
गणेशजी का अंतिम अवतार होगा धूम्रकेतु
धूम्रकेतु भगवान गणेश का 8वां व अंतिम अवतार (Ganesh Ji Dhumraketu Avatar) होगा। इससे पहले गणेशजी 7 अवतार वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट और विघ्नराज ले चुके हैं। धूम्रकेतु अवतार में वो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के साथ मिलकर मनुष्यों और धर्म की रक्षा के लिए अभिमानसुर का विनाश कंरेगे।
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