जयपुर। Teja ji : तेजाजी या वीर तेजाजी महाराज राजस्थान के सुप्रसिद्ध लोक देवताओं (Lok Devta) में से एक हैं जिनकी मान्यता दूसरे राज्यों में भी है। तेजाजी मजाराज की जयंती हर साल माघ शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दौरान गांवों व शहरों में बने तेजाजी महाराज के मंदिरों में विशेष सेवा पूजा की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि इस दौरान तेजाजी जयंती (Tejaji Jayanti) पर गांवों में मेलों भी लगाए जाते हैं। तेजाजी महाराज एक ऐसे लोकदेवता हैं जिनके जीवन से हर किसी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं वीर तेजाजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
1. तेजाजी महाराज (Tejaji Maharaj) लोकदेवता हैं जिनकी जयंती तिथि के मुताबिक माघ शुक्ल चतुर्दशी को राजस्थान के लगभग प्रत्येक गांव व शहर में मनाई जाती है।
2. वीर तेजाजी (Veer Tejaji) को सबके परम आराध्य, गौ रक्षक और सत्यवादी लोकदेवता के रूप में जाना जाता है।
3. वीर तेजाजी का जन्म (Tejaji Ka Janam) विक्रम संवत 1243 की माघ सुदी चौदस तिथि को नागौर जिले के खरनाल में एक जाट घराने में हुआ था। हालांकि, कहीं-कहीं पर उनके जन्म का उल्लेख माघ शुक्ल चौदस, संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को भी किया गया है। तेजाजी के पिता का नाम कुंवर ताहड़जी था जो गांव के मुखिया थे। तेजाजी की माता का नाम राम कंवर था। तेजाजी महाराज बचपन से ही वीर, साहसी और अवतारी पुरुष थे।
4. तेजाजी महाराज के 4 से 5 भाई बहन बताए गए हैं। हालांकि, वंशावली के मुताबिक तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे उनके अलावा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी।
5. माना जाता है कि वीर तेजाजी महाराज भगवान शिवजी की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही जन्मे थे।
6. तेजाजी महाराज का मुख्य मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल में है।
7. राजस्थान के लोकदेवता वीर तेजाजी महाराज को शिवजी के प्रमुख ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है। तेजाजी को राजस्थान के साथ ही गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। तेजाजी महाराज को जाति व्यवस्था का विरोधी भी माना जाता है।
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8. वीर तेजाजी की कथा (Tejaji Ji Ki Kahani) के मुताबिक उनका विवाह सुंदर गौरी से हुआ था। एकबार तेजाजी अपने साथी के साथ अपनी बहन पेमल को लेने के लिए उसके ससुराल जाते हैं। बहन पेमल के ससुराल जाने पर तेजाजी को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं।
उसी समय रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग उनके घोड़े के सामने आता और उन्हें डसने के लिए कहता है। वीर तेजाजी उसें रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, लेकिन भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता। तब तेजा उसे वचन देते हैं कि ‘हे भाषक नाग, मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गायें छुड़ाने बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डस लेना, यह तेजा का वचन है।’ तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग ने रास्ता छोड़ दिया है।
इसके बाद जंगल में तेजाजी का डाकू मेणा एवं उसके साथियों के साथ भयंकर युद्ध हुआ जिसमें सभी डाकू मारे गए लेकिन तेजाजी का पूरा शरीर घायल हो गया। इसके बाद अपने साथी के हाथ गायें बहन पेमल के घर भेजकर वचन में बंधे तेजाजी भाषक नाग की बांबी की ओर चलते जाते हैं। घोड़े पर सवार पूरा शरीर घायल अवस्था में होने पर भी तेजा को आया देखकर भाषक नाग आश्चर्यचकित रह गया।
इसके बाद भाषक नाग ने तेजा से कहा कि ‘तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं डसूं कहां?’ तब वीर तेजाजी उसे अपनी जीभ बताकर कहा कि – ‘हे भाषक नाग, मेरी जीभ सुरक्षित है, उस पर डस लो।’ वीर तेजा की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है- ‘आज के दिन यानी भाद्रपद शुक्ल दशमी से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।’ इसके बाद नाग घोड़े के पैरों पर से ऊपर चढ़कर तेजा की जीभ पर डस लेता है। उसी दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
9. तेजाजी को सर्प दंश को दूर करने वाले देवता के तौर पर भी पूजा जाता है। माना जाता है कि सांप के डसने या सांप के काटने के बाद जो लोग वीर तेजाजी को याद करते अथवा उनके मंदिर जाते हैं, वो ठीक हो जाते हैं।
10. हर साल भादवा महीना की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेज दशमी का त्योंहार मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन उनका स्वर्गवास हो गया था।
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