जयपुर। चीन अब कीड़े-मकोड़ों की फौज तैयार कर रहा है जिसको लेकर पूरी दुनिया में खौफ छा गया है. इतना ही नहीं बल्कि चीन के साथ अन्य देश भी ऐसी ही फौज तैयार कर रहे हैं जो चिंता का विषय है. इनमें चीन से लेकर फ्रांस, अमेरिका, स्विटजरलैंड और फिनलैंड जैसे देश शामिल हैं जहां एडिबल इंसेक्ट नाम से खाने-पीने की चीजों की रेंज रहती है. यहां पर हाई प्रोटीन इंसेक्ट पावडर का इस्तेमाल ब्रेड, पास्ता और प्रोटीन बार में भी खूब किया जा रहा है.
1. कीड़ों की पैदावार का पर्यावरण से कनेक्शन
एडिबल कीड़ों की बात करने वालों का सबसे बड़ा तर्क पर्यावरण है. कीड़े-मकोड़ों से मिलने वाले 1 किलो को बनाने में बीफ या दूसरे मांस की तुलना में सिर्फ 10 प्रतिशत खाना, पानी और जमीन इस्तेमाल होती है. इस दौरान 1 प्रतिशत ही ग्रीनहाउस गैस निकलती है.
2. नॉनवेज से जहरीली गैसों का ये है संबंध
इसी फरवरी में ब्रिटेन की कार्बन बीफ संस्था ने एक डेटा जारी किया, जिसके अनुसार मांस और डेयरी उद्योग हर साल 7.1 गीगाटन ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करता है. इसमें भी बीफ सबसे ऊपर है. एक किलोग्राम बीफ के लिए लगभग 60 किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. इस वजह से इंसेक्ट्स कम लागत में बड़े फायदे हैं. उनसे किसी बड़ी बीमारी का भी डर नहीं रहता है, जैसे बड़े जानवरों से हो सकता है, जैसे कोरोना या बर्ड फ्लू.
3. ऐसे होती कीड़ों की फार्मिंग
कीड़े-मकोड़ों की पैदावार कई तरह से होती है. ये कंपोस्ट बिन से लेकर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रीज तक में पाले जाते हैं. इसमें चीटियां, इल्लियां, पतंगे, मधुमक्खियां, मीलवॉर्म्स और कॉकरोच शामिल हैं. आपको बता दें कि चीन के शिचांग शहर के जिन लैब्स में कॉकरोच की खेती होती है.
4. वेस्ट मैनेजमेंट भी हो रहा
कीड़ों से एक और मसकद पूरा होता है कि ये वेस्ट मैनेजमेंट के काम आता है. आज के समय में हर शहर में भारी मात्रा में खाना बर्बाद होता है. इसको लेकर चीन और वियतनाम ने एक प्रयोग किया है. इसके तहत कॉकरोच को बचा हुआ खाना दिया जाने लगा. इससे वे भी पल जाते हैं और काफी सारे वेस्ट प्रॉडक्ट का मैनेजमेंट भी हो जाता है.