— डॉ. योगेन्द्र सिंह नरूका इतिहासविज्ञ
Rana Sanga News : जयपुर। टोंक के डिग्गी में मौजूद ये शिलालेख यह प्रमाणित करता है कि खानवा के युद्ध में राणा सांगा हारे नही थे, अपितु खानवा से बाबर को बुरी तरह से खदेड़ने के बाद घायल अवस्था में बसवा दौसा आए और वहाँ के वैद्य उनका इलाज करने में असमर्थ रहे क्योंकि उनके तोप का बारूद लगा था। उसका जहर शरीर में फैलता जा रहा था, फिर तय हुआ कि एक तरफ से राणा सांगा चलेगे दूसरी ओर से मेवाड़ से उनके राजवैद्य चलेगे। इसी क्रम में राणा सांगा टोंक स्थित डिग्गी पहुंचे।
सामंतों को पुरस्कृत किया
यहाँ उनकी हालत बहुत ही नाजुक हो चली थी। उन्होने अपनी अवस्था देखते हुए खानवा युद्ध में वीरता पराक्रम दिखाने वाले समस्त सामंतों को पुरस्कृत किया व जागीरे प्रदान की। यहाँ यह देखने योग्य है कि राणा सांगा घायल अवस्था में सम्पूर्ण मैदानी भाग से मेवाड़ की ओर जा रहे थे बाबर ने पीछा कर उन्हे मारा क्यों नही???
भाग खड़ा हुआ था बाबर
इससे स्पष्ट होता कि बाबर स्वयं खानवा से अपनी जान बचा कर भागा था। उसने अपनी आत्म कथा बाबर नामा में भी लिखा है कि राणा सांगा से अब ओर युद्ध करने का उसमें साहस नही है,उसने सांगा जैसा वीर योद्धा नही देखा। यहाँ यह भी विचारणीय है कि कोई भी हारा हुआ राजा अपने सामन्तों को पुरस्कृत करेगा या दण्ड देगा? खानवा युद्ध के बाद राणा सांगा ने अपने सामंतों को पुरस्कृत किया था। डिग्गी,टोंक का शिलालेख बता रहा है कि किसी तिवाड़ी नामक वैद्य ने उनका इलाज किया था तथा यही उन्होनें खानवा युद्ध के वीर पराक्रमी योद्धाओं को पुरस्कृत किया व जागीरे प्रदान की।
80 घाव वाले विजयी राणा सांगा
डिग्गी, टोंक में अपने सामन्तों को पुरस्कृत करने के बाद राणा सांगा माण्डलगढ़ भीलवाड़ा लाए गए, यहाँ तक आते आते बारूद का जहर शरीर में इतना अधिक फैल चुका था कि उनकी मृत्यु हो गई और 80 घाव वाले विजयी राणा सांगा ने अन्तिम सांस ली।
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