Vat Savitri Vrat Puja: सनातम धर्म में अमावस्या को पितरों की तिथि मान कर कुछ विशेष नियमों की रचना की गई है। यद्यपि इस दिन बड़ और पीपल की पूजा का भी प्रावधान रखा गया है। माना जाता है कि अमावस्या का व्रत एवं इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भक्तों के सभी संकटों का नाश करती है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत भी कहा जाता है।
कब है वट सावित्री कथा पूजा मुहूर्त
इस बार ज्येष्ठ माह की अमावस्या 6 जून 2024 (गुरुवार) को है, अतः वट सावित्री व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।इस दिन रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र रहेंगे, साथ ही धृति नामक शुभ योग भी बन रहा है। इसी दिन रोहिणी व्रत भी रखा जाएगा। यदि शुभ मुहूर्त की बात करें तो दोपहर 11.58 बजे से 12.53 बजे के बीच अभिजीत मुहूर्त में पूजा की जा सकती है। इसी समय लाभ का भी चौघड़िया रहेगा। इसके अतिरिक्त सुबह 5.32 बजे से 7.16 बजे तक शुभ के चौघड़िया भी पूजा के लिए उत्तम माना गया है।
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क्या है वट सावित्री व्रत
ज्येष्ठ माह की अमावस्या को महिलाएं वट सावित्री व्रत करती हैं। इस दिन वटवृक्ष (बरगद) की पूजा कर भगवान से अखंड सुहागन एवं सौभाग्य का वर मांगा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से पति-पत्नी की उम्र लंबी होती है और उनके जीवन में आने वाले सभी कष्टों का नाश होकर सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यह वट सावित्री व्रत की कथा एवं महत्व
पुराणों में सत्यवान और सावित्री की कथा बताई गई हैं। कथा के अनुसार सत्यकाम की आयु बहुत कम थी। ऐसे में उसकी पत्नी ने यमराज से लड़ कर अपने पति को जीवनदान दिलाया था। वट सावित्री व्रत का संबंध भी इसी कथा से बताया जाता है। यही वजह है कि सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करती है।
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इस दिन वे सुबह जल्दी उठ कर सोलह श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, उसके नीचे बैठ कर कथा सुनती हैं और पेड़ के चारों तरफ सूत लपेटते हुए पूजा करती हैं। बहुत सी महिलाएं इस दिन व्रत भी रखती हैं। इस दिन भगवान विष्णु तथा मां लक्ष्मी की प्रसन्नता के निमित्त भी पूजा-पाठ के विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।
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