Ramcharitmanas Gayatri Mantra: शास्त्रों में गायत्री मंत्र को सर्वोत्तम मानकर मंत्रराज की संज्ञा दी गई है। एक अकेला गायत्री मंत्र व्यक्ति को इस पूरे ब्रह्माण्ड को जीतने की सामर्थ्य दे सकता है। गायत्री मंत्र से ही ऋषि विश्वामित्र ने दूसरे स्वर्ग की रचना कर दी थी। यही कारण है कि सभी धर्मज्ञ विद्वान सभी भक्तों को प्रतिदिन इस मंत्र के पाठ और जप की आज्ञा देते है।
यद्यपि गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ मंत्र माना गया है, इसे जपने का अधिकार सभी को नहीं मिला हुआ है। इसका अनुष्ठान करने के लिए व्यक्ति को बहुत से नियमों का पालन करते हुए पूर्ण सात्विक जीवन जीना होता है। साधना के दौरान एक छोटी भूल भी व्यक्ति का सर्वनाश कर सकती है। इस वजह से इस मंत्र का जप गुरु की आज्ञा लेकर उन्हीं के दिशा-निर्देश में करना चाहिए।
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने गायत्री मंत्र की इन मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए अपनी अनन्य कृति रामचरितमानस में भी गायत्री मंत्र की रचना की है। यह एक चौपाई छंद के रूप में है, इसका पाठ पूरे दिन में कभी भी किया जा सकता है, जो लोग इसका अनुष्ठान करना चाहते हैं, वे भी किसी योग्य विद्वान पंडित के मार्गदर्शन में इसका दस हजार, सवा लाख अथवा अपनी सामर्थ्य अनुसार अधिकाधिक जप का अनुष्ठान कर सकते हैं।
तुलसीदासजी कृत गायत्री मंत्र निम्न प्रकार है
जनकसुता जग जननी जानकी, अतिशय प्रिय करुणा निधान की।।
ताके जुगपद कमल मनावउँ, जासु कृपा निर्मल मति पावउँ।।
अर्थात् राजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥
इस चौपाईस्वरूप मंत्र के अनुष्ठान में कोई विशेष परिश्रम नहीं करना होता है। किसी भी समय स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर भगवान राम और मां सीता का ध्यान रखते हुए इस चौपाई का जप करें। इसके लिए आप एक हजार, दस हजार, सवा लाख या सवा करोड़, जितना भी आपकी सामर्थ्य हो, उतना जप कर सकते हैं। गायत्री मंत्र का जप सायं सूर्यास्त के बाद नहीं जपा जाता है परन्तु इस चौपाई मंत्र को आप कभी भी जप सकते हैं।
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गायत्री मंत्र के जप से प्राप्त होने वाले सभी पुण्य और फल इस चौपाई मंत्र के जप से प्राप्त होते हैं। इसके प्रभाव से भक्तों को भगवान राम की अनन्य भक्ति प्राप्त होती है और वे मोक्ष प्राप्त कर कैवल्य धाम में निवास करते हैं। यदि किसी व्यक्ति के मन में विभिन्न प्रकार के भोगों को पाने की कोई इच्छा हो तो वह भी इसके जप से पूरी होती है।
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