भारत सरकार 'रेलवे' में इस वक्त काफी निवेश कर रही है। इसके पीछे का उद्देश्य 'सामान लाने और ले जाने' की लागत में कमी लाना है। लॉजिस्टिक कॉस्ट को कम करने के लिए सरकार एक नया फॉर्मूला ला रही है। इसकी मदद से पता चल सकेगा कि लागत में कमी आई है या फिर इसे बढ़ाया गया है। Department for Promotion of Industry and Internal Trade के मुताबिक साल के अंत तक लॉजिस्टिक कॉस्ट का अनुमान आने की संभावना है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक Logistics Cost का आकलन करने का काम तेजी से चल रहा है। हालांकि पहले अक्टूबर 2023 तक बेसलाइन एस्टिमेट की घोषणा होने की उम्मीद थी, लेकिन सटीक अनुमान लगाने की प्रक्रिया में कठिन परेशानियां आने की वजह से इसमें थोड़ी देरी हुई है। 'लॉजिस्टिक कॉस्ट' का सही और सटीक अनुमान को बेहतर बनाने के इस काम में सरकार किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। इसके आने के बाद व्यापार सुविधाजनक बनेगा।
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आसान नहीं है सटीक अनुमान लगाना
Logistics Cost का सटीक आकलन करना आसान काम नहीं है। इसी वजह से 'नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी' के तहत बेसलाइन अनुमान DPIIT के लिए मददगार होगा। 'लॉजिस्टिक कॉस्ट' में हर साल एक्यूरेसी में सुधार करना होता है। ऐसी स्तिथि में बेसलाइन से शुरुआत करनी होती है। DPIIT अधिकारी भी मानते है कि कोई भी देश अपनी लॉजिस्टिक कॉस्ट का सटीक अनुमान लगाने में सफल नहीं रहा है। DPIIT ने वर्ल्ड बैंक के साथ यह मेथड साझा किया है।
वर्ल्ड बैंक ने भी DPIIT के मेथड को स्वीकार कर लिया है। डीपीआईआईटी ने Ministry of Statistics and Policy Implementation (MoSPI) के डेटा का इस्तेमाल ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट, वेयरहाउसिंग कॉस्ट और सहायक परिवहन की गतिविधियों की लागत निकालने में किया है।
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भारत में लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। लेकिन भारत अभी इसकी कमी से जूझ रहा है। डीपीआईआईटी की माने तो भारत सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए 11.93 लाख करोड़ रुपये की 119 परियोजनाओं पर काम कर रही है। साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि अगले तीन सालों में इन कमियों को दूर कर लिया जाएगा। 'लॉजिस्टिक कॉस्ट'के सटीक अनुमान के लिए विदेशी विशेषज्ञों से भी सलाह ली जा रही है।