जयपुर। Fish Farming : मछली पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसें करके कोई भी व्यक्ति मालामाल हो रहा है। राजस्थान समेत अभी देश के कई राज्यों में किसान अपनी खेती के साथ मछली पालन करके खूब पैसा कमा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि मछली पालन दुनिया में एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभरा है। आपको बता दें कि भारत दुनिया में मछली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे नंबर आ चुका है और यह व्यवसाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आप खेती के साथ ही मछली पालन का व्यवसाय शुरू करके कैसे मोटा पैसा कमा सकते हैं।
ग्रामीण युवकों के लिए मछली पालन रोजगार का सुनहरा अवसर है। मछलियों के शुद्ध बीज प्राप्त करने का सबसे बढ़िया तरीका फिश हैचरी है। हैचरी में 2.5 से 3 करोड़ मछली बीज उत्पादन कर सकते हैं। इस पर सरकार की ओर अलग 40 से 60 प्रतिशत सब्सिडी भी दी जाती है।
आज के समय में मछली पालने वाले मत्स्य हैचरी के मछली बीजों पर अधिक विश्वास करते हैं। मत्स्य हैचरी के लिए स्थाई टैंक बनाए जाते हैं। इन हैचरी में वयस्क नर और मादा मछलियों को उत्प्रेरित कर प्रजनन करवाते हैं। इसके लिए स्थाई टैंक में कृत्रिम रुप से बारिश करवाई जाती है। इन मछलियों को हार्मोन्स के इंजेक्शन लगाकर प्रजनन के लिए प्रेरित किया जाता है जिससें मछलियों में अंडे बनने व फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया तेज हो जाती है। यह प्रकिया प्रजनन कुंड अथवा तालाब में रखे मच्छरदानी के कपड़े से निर्मित आयाताकार बक्सा, जिसको हापा कहा जाता है उसमें कराई जाती है।
अगर बड़ी आकार की मछलियों की प्रजाति की बात की जाए तो इनमें भारतीय मेजर क्रॉप रोहू मादा, जिसका वजन एक किग्रा तक होता है प्रजनन करने के बाद उसकी 100000 अंडे देने की क्षमता होती है। मछली द्वारा एकबार अंडे देने पर बच्चे को बाहर आने में 36 घंटे लगते हैं। इन बच्चो को 72 घंटे तक आहार की आवश्यकता होती है। कुंड या तालाब में एक महीन जाली लगी होती है जिससे अंडे से बच्चे बनकर तैयार होते हैं।
आपको बता दें कि अंडे से मछली के 5 मिलीमीटर साइज के बच्चे निकलते हैं जिनहें स्पॉन यानी जीरा कहा जाता है जिनका भरण पोषण नर्सरी में किया जाता है। 3 से 4 हफ़्ते नर्सरी में रहने के बाद इनका साइज़ 20 से 25 मिमी हो जाता है जिन्हें फ्राई यानी पौना भी कहते हैं। इसके बाद इनको 3 माह तक बड़े पॉन्ड में रखा जाता है। यहां पर ये 75 से 100 एमएम साइज के हो जाते हैं। इसके बाद इन्हें तालाब में डाला जाता है जिनको फिंगरलिंग यानी अंगुलिकाए कहा जाता है।
हैचरियों में 1 साल में लगभग 3 करोड़ मछली के बीज किए जा सकते हैं। अच्छी प्रजाति के जैसे रेहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प एवं कॉमन कार्प मछलियों के बीजों का उत्पादन किया जाता है। फ्राई आकार की मछली बीज लगभग 110 रुपये 1000 और जीरा 750 रूपये प्रति लाख की दर से मार्केट में बिकती है। इस तरह से हैचरी में कुल 36 लाख रुपये का मछली बीज हर साल तैयार होता है। मछली बीज उत्पादन खर्च की बात करें तो 50 से 60 फ़ीसदी इसके उत्पादन पर खर्च होता है। इसके बाद जो बचता है वह शुद्ध मुनाफ़ा होता है।
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