17th Ramadan : पवित्र माह रमजान में दूसरा अशरा चल रहा है। कल 28 मार्च 2024 को 17वां रोजा रखा जाएगा। आज सऊदी अरब में 17वां रोजा है जबकि भारत में 16वां रोजा है। इस्लाम की तारीख में सत्रहवें रोजे का मर्तबा बुलंद है। 17वें रमजान (17th Ramadan) के दिन ही इस्लाम के लिए पहली जंग लड़ी गई थी। अरब क्षेत्र में लड़ी गई ये जंगे बद्र बुराई के खिलाफ थी। बद्र की जंग में मुसलमानों की तरफ से खुद नबी ए करीम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सेना का नेतृत्व किया था। मात्र 313 इस्लामी योद्धाओं ने दुश्मन को नेस्तोनाबूद करके रख दिया। तो चलिए आपको 17वें रमजान की हिस्ट्री बताते हैं। इससे ये भी पता चलता है कि इस्लाम केवल तलवार के बल पर नहीं फैला है बल्कि अच्छे अख्लाक़ यानी व्यवहार और सच्चाई व ईमानदारी के बल पर फैला है।
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दो हिजरी से ही रमजान के रोजे फर्ज किए गए थे और रमजान की 17 तारीख को यानी 13 मार्च 624 को इस्लाम की पहली जंग लड़ी गई, जो इतिहास में जंगे बद्र (Battle of Badr) के नाम से मशहूर है। मदीने से करीब 80 मील दूर बद्र नामक जगह पर बैटल ऑफ बद्र हुआ। इस जंग में मक्के के कुरैश कबिले के तकरीबन 1000 बड़े-बड़े योद्घा शामिल थे तो दूसरी तरफ पैगम्बरे इस्लाम के साथ उनके मात्र 313 साथी शामिल थे। इन सभी 313 लोगों में से ज्यादातर लोगों ने कभी जंग लड़ी ही नहीं थी। इतना ही नहीं मुसलमानों के पास जंग के साजों सामान व हथियार भी नाम मात्र के थे।
Battle of Badr यानी जंगे बद्र में मुसलमानों ने अधर्म के खिलाफ जंग की थी। क्योंकि मुहम्मद साहब को मक्का से निकाल दिया गया था, तो वे मदीना रहने लग गए थे। लेकिन अरब के कुरैश फिर भी घात लगाए रहते थे। ऐसे में जंगे बद्र में मक्का की बेहतरीन फौज ने मुसलमानों का सफाया करने के मकसद से बद्र के मैदान में चढ़ाई कर दी। लेकिन अल्लाह की मदद से नबी ए पाक ने महज 313 लड़ाकों के साथ ने केवल जंग जीती बल्कि दुश्मनों के दिल भी जीते। बंदियों के साथ अच्छा सुलूक किया जिसे देखकर कई मुशरिकों ने कलमा पढ़ लिया और मुसलमान हो गए। नबी ए करीम ने जब भी तलवार उठाई तो वह केवल जालिम को जवाब देने के लिए उठाई। इस्लाम किसी भी तरह की हिंसा या खून खराबे का समर्थन नहीं करता है। केवल आत्म सुरक्षा के लिए जंग की इजाजत देता है।
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सत्रहवां (17th Ramadan) रमजान 28 मार्च 2024 को रमजान के दूसरे अशरे का सातवां दिन है। 11 रमजान से मगफिरत का दूसरा अशरा शुरु हो चुका है। कहा जाता है कि 11 रमजान से लेकर बीस रमजान की शाम तक सभी मुसलमानों की मगफिरत की जाती है। सच्चे दिल से अगर कोई बंदा रमजान के दूसरे अशरे में तौबा इस्तगफार कर ले तो उसकी मगफिरत कुबूल होती है। मतलब गुनाहों से माफी मिलने का यही सबसे बेहतरीन वक्त है। 28 मार्च 2024 को सत्रहवें रमजान के दिन ये दुआ पढ़ने से आप पर मौला की रहमत नाजिल होगी तथा नबी ए पाक का साया नसीब होगा। जंगे बद्र का ये वाकिया अपने बच्चों को जरूर सुनाए ताकि वे भी सच्चे मोमिन बन सकें।
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