26 January Deshbhakti Kavita Hindi: भारत इस वर्ष अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा हैं। यह दिन उन महान लोगों को याद करने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के बाद भी एक मज़बूत और समृद्ध गणराज्य बनाने की दिशा में काम किया। इस दिन देशभर में उत्साह और उल्लास का माहौल रहता है। देशभक्ति गीतों और कविताओं के माध्यम से सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सुसज्जित किया जाता हैं। इसी कड़ी में हम आपको बता रहे हैं कुछ कवियों द्वारा लिखी गई देशभक्ति कविताओं के बारे में। ये कवितायें न सिर्फ पढ़कर बल्कि सुनने वाले को भी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होगा।
चल तू अकेला (रवींद्र नाथ ठाकुर)
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…
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तराना-ए-बिस्मिल (राम प्रसाद बिस्मिल)
बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।
लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।
खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।
कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।
यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।
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धरती के लाल (द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)
धूल भरे हैं तो क्या है, हम
धरती मां के लाल हैं
अंधियारी में हम ही उसकी
जलती हुई मशाल हैं।
पढ़-लिख कर हम दूर करेंगे
अपने सब अज्ञान को
ऊंची और उठायेंगे हम
भारत मां की शान को।
आज कली, कल फूल और
परसों तारे बन जाएंगे
चंदा-सूरज बनकर हम दिन
रात ज्योति बिखराएंगे।
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चर्चा अपने क़त्ल का (रामप्रसाद बिस्मिल)
चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है
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सर फ़िदा करते हैं (रामप्रसाद बिस्मिल)
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
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