13 मई 2008 के बम ब्लास्ट की 15वीं बरसी और बरसी उन लोगों की जो निर्दोष थे। वे असमय काल के ग्रास में चले गए। यह किस ओर संदेह करता है? अमन चैन और शांति से रहने वाला जयपुर आखिर क्यों दहला 13 मई 2008 को?
आतंकियों के नापाक इरादे
जयपुर जैसे खूबसूरत शहर को देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या कम नहीं है। जयपुर एक ऐसा शहर, जिसका ना केवल ऐतिहासिक इतिहास है, बल्कि सांस्कृतिक और गौरवमय इतिहास रहा है। ऐसे जयपुर में पर्यटकों की भी अच्छी आवाजाही रहती है।
यही नहीं, जयपुर में हिंदू- मुस्लिम एकता भी देखने को मिलती है। यहां हिंदू मंदिरों के साथ-साथ कई मस्जिद और दरगाह भी है। इतना ही नहीं कई स्थान तो इन्हीं के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन फिर भी कुछ लोगों को यह शांति रास नहीं आई और उन्होंने जयपुर को दहलाने की साजिश रच डाली।
आतंकवादियों का कलेक्शन पाकिस्तान के आईएसआई से बताया गया लेकिन फिर भी ठोस साक्ष्य के अभाव में आतंकवादी कहे या आरोपी बरी कर दिए गए।
आठ धमाकों से दहला जयपुर सुन्न पड़ गया उस फैसले को सुनकर। जो हाल ही में हाईकोर्ट का आया।
क्या पुख्ता सबूतों का अभाव था?
जो चले गए वह बेचारी तो चले गए। लेकिन जो रह गए, उनके दर्द को कैसे बुलाया जा सकता है? मामले की जांच के दौरान तात्कालिक पुलिस महा निरीक्षक लक्ष्मण मीणा, उपमहानिरीक्षक पोन्नूचामी, सौरभ श्रीवास्तव, राजेंद्र सिंह नैन महेंद्र चौधरी राघवेंद्र सुहासा, वरिष्ठ अधिकारी तैनात रहे। लेकिन फिर भी आतंकियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य नहीं जुटा पाए। जिसका लाभ उन्हें न्यायालय में मिला।
धमाकों में इतने लोगों की जान गई । गृह और विधि विभाग को आत्मचिंतन करना चाहिए था?
कहां-कहां क्या-क्या कमी रही? उसका विश्लेषण होना चाहिए था। पर अफसोस अदालत भी सबूत मांगती है और सबूतों के अभाव में आतंकी बरी कर दिए गए। निर्दोष मुंह ताकते रह गए।