जयपुर। CAA Benefits: नागरिकता संशोधन कानून से बचने या इसका फायदा उठाने के लिए भारत में मुस्लिमों ने कई तरह के रास्ते निकाल लिए हैं। ये अफगानी और रोहिंग्या मुसलमान हैं जो CAA का फायदा उठाने के लिए ईसाई धर्म अपना रहे हैं। ऐसा करने से उनका भारत में रहना आसान हो जाएगा। इस बात की जानकारी केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार को दी है। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, एजेंसियों की जांच में पाया गया है कि कम से कम अफगानिस्तान के 25 मुस्लिमों ने ईसाई धर्म अपना लिया।
CAA में 3 देशों के प्रवासियों के लिए बनाए गए हैं आसान नियम
भारतीय संसद में पास नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। इससे पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना जरूरी था। भारतीय संसद ने इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 साल से लेकर 6 साल किया है। इन 3 देशों के ऊपर उल्लिखित 6 धर्मों के बीते एक से 6 सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय को सीएए 2019 के नियम को नोटिफाई ने हैं।
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मुसलमान अपना रहे ईसाई धर्म
दक्षिण दिल्ली के अफगान चर्च में जाने वाले आबिद अहमद मैक्सवेल ने कहा था कि सीएए कानून बनने के बाद अफगानिस्तान के कई मुसलमान ईसाई धर्म अपना रहे है। बताया गया है कि 34 साल के मैक्सवेल जब 21 साल के थे तब भारत आए थे। उनके माता-पिता सुन्नी इस्लाम के मानने वाले थे और अफगानिस्तान में काबुल के नजदीक रहते थे। उन्होंने बताया कि अधिक अफगानिस्तानियों ने संयुक्त राष्ट्र हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी से शरण के लिए आवेदन दिया।
भारत में लगभग 1.60 लाख अफगानी
आधिकारिक डेटा के मुताबिक लगभग 1.50 लाख से 1.60 लाख अफगानी मुसलमान दिल्ली के ईस्ट कैलाश, लाजपत नगर, अशोक नगर और आश्रम में रहते हैं। इसी कम्यूनिटी ने अफगान सिख निदान सिंह सचदेव को पक्तिका प्रांत में तालिबान आतंकियों के चुंगल से छुड़ाने में सहायता की थी।
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कई रोहिंग्या खुद को बताते हैं बांग्लादेशी
अधिकारियों के मुताबिक लगभग 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान पूरे भारत में रहते हैं। जम्मू-कश्मीर में इन लोगों की संख्या सबसे अधिक है। रोहिंग्या मुसलमान बड़े पैमाने पर 2012 से देश में रह रहे हैं और अब खुद को बांग्लादेशी बताते हैं और ईसाई धर्म को भी अपना रहे हैं।