बिहार के मुख्यमंत्री इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकसाथ करने में लगे हुए है। इसके लिए वो कई दिग्गज नेताओं से भी मुलाकात कर चुके है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी, वर्तमान अध्य़क्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी के साथ मुलाकात करने के बाद नीतीश कुमार ने 12 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक रखी है। खबरों के मुताबिक इस बैठक में ना तो राहुल गांधी आएंगे और ना ही खड़गे। उनकी जगह पार्टी के किसी कद्दावर नेता को भेजा जाएगा।
जीत के बाद बदले कांग्रेस के तेवर
देश की सबसे पुरानी पार्टी की ओर से उठाए गए इस कदम से नीतीश कुमार को झटका लगा है। कर्नाटक चुनावों में मिली जीत के बाद कांग्रेस के तेवर बदल गए है। पार्टी अपनी जीत से काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रही है। इसलिए कांग्रेस पार्टी विपक्षी एकता को लेकर रुचि नहीं दिखा रही। फिलहाल पार्टी की ओर से ना तो सीट शेयरिंग को लेकर बात हुई औऱ ना ही पीएम पद के कैंडिडेट को लेकर किसी दूसरे नेता के नाम पर मुहर लगाना चाहती है। खबरों के मुताबिक राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद उन्हें एकबार फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहते है।
कोई नहीं समझा ममता की चालाकी
बिहार सीएम नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता को लेकर 24 अप्रैल को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मुलाकात की। इस दौरान ममता ने नीतीश को सलाह दी कि अगर उनकी 2 शर्ते मान ली जाए तो वे कांग्रेस को साथ वाले गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हैं। पहली शर्त यह थी कि विपक्षी एकता को लेकर पहली बैठक पटना में हो। ताकि दिल्ली बुला कर विपक्षी नेताओं से बात करने का राजशाही अंदाज खत्म होगा। ममता अपनी चाल में कामयाब रहीं वहीं कांग्रेस के दिग्गजों ने भी बैठक में नहीं आने की खबर देकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। ममता ने दूसरी शर्त यह रखी कि विपक्षी एकता के लिए उन दलों को राज्यों में अगुआ बनाया जाए, जो वहां मजबूत हों। दरअसल इन दोनों प्रस्तावों के पीछे ममता के मन में कांग्रेस को नीचा दिखाने का भाव था।