Delhi Jama Masjid: दिल्ली में जामा मस्जिद नहीं देखी तो फिर क्या ही देखा। 400 साल पहले मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली की जामा मस्जिद में शाही इमाम की प्रथा को शुरु किया था। अब 25 फरवरी को नये शाही इमाम शाबान बुखारी की ताजपोशी होने जा रही है। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि Delhi Jama Masjid में शाही इमाम के नाम के पीछे ये बुखारी शब्द क्यों इस्तेमाल किया जाता है। भारत के मुसलमान भी यह बात नहीं जानते हैं कि इसका हदीस बुखारी शरीफ से कोई तआल्लुक नहीं है। इस्लाम के ऐसे ही अनछुए पहलुओं पर सटीक जानकारी आपको यही मिलेगी।
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क्या है बुखारी लफ़्ज़ की कहानी?
तो जी बात है 1650 के दशक की जब मुगल बादशाह शाहजहां ने Delhi Jama Masjid तामीर करवाई। ताजमहल बनाने के अलावा भी शाहजहां ने बहुत से ऐसे नायाब काम किये हैं, जिनके बारे में लोगों को कम ही पता है। तो जी बादशाह सलामत ने उस दौर में अपने मित्र देश बुखारा (उज़्बेकिस्तान) के शासकों को एक इमाम की जरूरत पेश की। बुखारा के मशहूर मौलाना अब्दुल गफूर शाह बुखारी को भारत दिल्ली की जामा मस्जिद में बतौर इमाम भेजा गया। मुगल बादशाह शाहजहां ने उन्हें शाही इमाम की पदवी से सम्मानित किया। शाही का मतलब है राजसी और इमाम यानी मस्जिद में नमाज पढ़ाने वाले मौलाना साहब। इस तरह 400 साल पहले इस बुखारी शब्द का आगाज हुआ।
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शाही इमाम को सरकार सैलरी भी देती है
भारत और इस्लाम दोनों के संविधान में शाही इमाम जैसा कोई पद उल्लेखित नहीं है। शाहजहां की दी गई उपाधि पर बुखारी परिवार सालों से अपना हक जताता आ रहा है। 1650 के बाद से अब तक मौलाना अब्दुल गफूर शाह बुखारी के परिवार के लोग ही जामा मस्जिद के शाही इमाम बनते जा रहे हैं। सरकार ने भले ही इस पद को तवज्जो नहीं दी लेकिन इमाम को तनख्वाह तो दिल्ली वक्फ बोर्ड से ही मिलती है। सैयद अहमद बुखारी अपने बेटे Shaban Bukhari को 25 फरवरी को Delhi Jama Masjid की शाही इमामत सौप देंगे।