इस्लाम में बकरीद या ईद उल अजहा का बहुत महत्व है। त्याग और बलिदान का त्योहार ईद-उल-अजहा (बकरा ईद) आज 29 जून को हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। देशभर के मस्जिदों और दरगाह में लोग सुबह ईद की नमाज में शामिल हुए। विशेष नमाज पढ़ने के लिए सुबह 5 बजे से ही ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर लोग इकट्ठा होना शुरू हो गए थे। नमाज पढ़ने के बाद लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी। नमाज के बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू होगा। ईद से पहले महिलाओं ने खरीददारी की।
क्यों मनाई जाती है बकरीद?
इस्लाम में साल भर में दो ईद मनाई जाती हैं। एक को ‘मीठी ईद’ होती है तो दूसरी को ‘बकरीद’ कहा जाता है। मीठी ईद पर सिवैयां बनाते है तो बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। हर त्योहार का अपना महत्व होता है। बहुत से लोगों को नहीं पता कि बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है। तो बता दें कि यह हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह में बहुत विश्वास रखते थे। उन्होनें इस विश्वास को दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की बलि देनी थी। जैसे ही उन्होनें तलवार उठाई उनके बेटे की जगह एक जानवर आ गया। तब से बकरे की कुर्बानी दी जाने लगी। कुर्बानी के बाद पशु के गोश्त को तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है. इन तीन हिस्सों में एक हिस्सा गरीबों के लिए भी रखा जाता है।
कब मनाते है बकरीद
वैसे तो हर साल ईद की तारीख चांद दिखने पर निर्भर करती है लेकिन यह धुल हिस्सा महीना इस्लाम का 12वां महीना होता है। इस महीने के आठवें दिन हज शुरू होकर तेरहवें दिन खत्म होता है। बकरीद का त्योहार इस्लामिक महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है। अंग्रेजी के कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि चांद पर आधारित इस्लामिक कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर से 11 दिन छोटा होता है।
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