जयपुर। Friendship Day 2024 : हिंदू धर्म ग्रंथों में मित्रता के कई ऐसे किस्से और कहानियां है जो हर व्यक्ति को अपने जीवन प्ररेणा देते हैं। इन धर्म ग्रंथों के मित्रता को लेकर ऐसे किस्सों का वर्णन किया जिनमें कभी एक मित्र की चूक के कारण दूसरे मित्र का विनाश हो गया तो किसी मित्र के कारण उसका विनाश होता बच गया। इनमें सबसे मजबूत महाभारत काल में हुई कर्ण और दुर्योधन की मित्रता मानी जाती है। लेकिन, कर्ण परम मित्र होने के बावजूद दुर्योधन को वो शास्त्रानुसार वो सीख नहीं दे सका जो उसको देनी चाहिए थी।, अत: पूरे कौरव कुल का विनाश हो गया। ऐसे में आइए जानते ही ऐसी ही कुछ मित्रताओं के बारे में…
महाभारत में दुर्योधन और कर्ण परम मित्र थे। दुर्योधन ने कर्ण को अपना प्रिय मित्र मानते हुए उचित मान-सम्मान दिलवाया। इसी बात के कारण दुर्योधन द्वारा अधर्म करने पर भी कर्ण भी उसें ऐसा करने से रोक नहीं और उसका साथ देता रहा। लेकिन, सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र को अधर्म करने से रोकता है। यदि दोस्ती में यह बात ध्यान नहीं रखी जाए तो विनाश तय है। महाभारत में दुर्योधन की गलतियों के कारण उसका पूरा कुल बर्बाद हो गया। कर्ण धर्म-अधर्म के बारे में जानता लेकिन इसके बावजूद उसने मित्र दुर्योधन को अधर्म करने से नहीं रोका जिस वजह से मित्र के साथ ही स्वयं का भी विनाश हो गया।
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त्रेता युग में श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हनुमानजी ने करवाई तो श्रीराम ने वचन दिया था कि वे बाली से सुग्रीव का राज्य और पत्नी वापस दिलाएंगे। वहीं, सुग्रीव ने सीता माता की खोज में सहयोग करने का वचन दिया। अंतत: श्रीराम ने बाली को मार कर अपना वचन पूरा करते हुए सुग्रीव को राजा बनाया। हालांकि, सुग्रीव राजा बनने के बाद अपना वचन भूल गए। इसके बाद लक्ष्मण ने क्रोध करते हुए उन्हें अपना वचन याद दिलाया जिसके बाद सुग्रीन ने सीता माता की खोज में सहायता की। इस मित्रता से यह सीख मिलती है कि हमें मित्रता में कभी भी अपने दिए हुए वचन को नहीं भूलना चाहिए।
महाभारत काल में श्रीकृष्ण और अर्जुन की मित्रता सर्वश्रेष्ठ थी। श्रीकृष्ण ने हर समय अर्जुन की सहायता की। अर्जुन ने भी अपने प्रिय मित्र श्रीकृष्ण की हर सलाह मानी। अर्जुन ने श्रीकृष्ण की नीति के अनुसार ही युद्ध किया और पांडवों को जीत दिलाई। इससे यह सीख मिलती है हमेशा अपने मित्र को सही सलाह देनी चाहिए और मित्र की सलाह पर अमल भी करना चाहिए।
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महाभारत में श्रीकृष्ण और द्रौपदी के बीच मित्रता थी। श्रीकृष्ण द्रौपदी को अपनी सखी कहते थे। द्रौपदी के पिता महाराज द्रुपद चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण से हो, लेकिन श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का विवाह अर्जुन से करवा दिया। जब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तो चक्र की वजह से उनकी उंगली में चोट लग गई थी जिस कारण रक्त बहने लगा। उस समय द्रौपदी ने अपने वस्त्रों से एक कपड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांधा था। हालांकि, इसके बाद द्रौपदी का भरी सभा में चीरहरण हुआ तो श्रीकृष्ण ने उंगली पर बांधे उस कपड़े का ऋण उतारा और द्रौपदी की साड़ी की लंबाई बढ़ाकर उसकी लाज बचाई। इससे सीख मिलती है कि समय पड़ने पर अपने मित्र का ऋण जरूर उतारना चाहिए।
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