Gutter se Bijli Banaye : हमारे देश में गटर के पानी को सबसे खराब चीज समझा जाता है लेकिन अगर वहीं बिजली बनाने के काम आने लग जाए तो देश की सबसे बड़ी समस्या ही हल हो जाएगी। नालियों और सीवरों के जिस अपशिष्ट पानी (Sewage se Bijli Banaye) को पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या समझा जाता है वह उपयोगी भी हो सकता है। जी हां गटर के गंदे पानी से बिजली (Gutter se Bijli Banaye) बनाई जा सकती है। चलिए इस नवाचार के बारे में जान लेते हैं। इस पोस्ट को युवा पीढ़ी जमकर शेयर करें ताकि सरकारें इस पर अमल कर सके और हमारी बिजली की समस्या दूर हो सके। साथ ही शहर को सीवेज के गंदे पानी से निजात मिल सके। कुल मिलाकर अगर प्रोब्लम है तो उसका सॉल्यूशन भी होगा, अगर कहीं कुछ जलेगा तो बेशक पॉल्यूशन भी होगा।
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ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की नई रिपोर्ट ‘वेस्टवाटर-टर्निंग प्रॉब्लम टू सोल्यूशन’ बता रही है कि सही रणनीतियों की मदद से सीवरेज के इस दूषित जल (Gutter se Bijli Banaye) की समस्या का न सिर्फ समाधान हो सकता है, बल्कि इससे 50 करोड़ लोगों के लिए वैकल्पिक बिजली की व्यवस्था और चार करोड़ हेक्टेयर जमीन की सिंचाई भी की जा सकती है। इस सिंचित जमीन का आकार करीब जर्मनी के बराबर जितने खेतों की सिंचाई करने जितना है।
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एक शोध से पता चला है कि सीवेज के पानी में मौजूद पोषक तत्व खेतों के लिए काफी फायदेमंद (Gutter ke Pani se Kheti) हो सकते हैं। अनुमान है कि यदि गटर के पानी में मौजूद पोषक तत्वों के दोबारा उपयोग से सिंथेटिक उर्वरकों पर बढ़ती निर्भरता को काफी कम किया जा सकता है। इसकी सहायता से खेती-बाड़ी में इस्तेमाल की जाने वाली नाइट्रोजन और फास्फोरस की मांग को 25 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति वर्ष लगभग 32 हजार करोड़ क्यूबिक मीटर अपशिष्ट पानी का फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। करीब 50 फीसदी दूषित पानी को बगैर स्वच्छ किए नदियों, झीलों और समुद्र में छोड़ा जा रहा है।
ताज़ा रिसर्च के अनुसार, इस प्रक्रिया से पानी की भारी बर्बादी रोकने में सफल हो सकते हैं। इस समय भारत सहित दुनिया की एक बड़ी आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत सहित दुनिया के 25 देशों में जल संकट (Gutter se Water Crisis Overcome) गंभीर रूप ले चुका है। ये वे देश हैं जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। यह समस्या केवल इन्हीं देशों तक ही सीमित नहीं है। दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी यानी 400 करोड़ लोग साल में कम से कम एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करते हैं। गटर के पानी को (Wastewater treatment plants WWTPs) प्रोसेस करके जल संकट को दूर किया जा सकता है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में घरेलू और शहरी स्रोतों से निकलने वाले अपशिष्ट जल की मात्रा 38 हजार करोड़ क्यूबिक मीटर थी, वह 2030 तक बढ़कर 49,700 करोड़ क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी। ऐसे में इस अमूल्य संसाधन को ऐसे ही नाली में बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। वर्तमान में मात्र 11 फीसदी ट्रीटेड वाटर (Gutter se Bijli Banaye) का पुनः उपयोग किया जाता है। फ्रांस में मात्र 0.1 फीसदी अपशिष्ट जल को साफ करने के बाद फिर से उपयोग किया जाता है। करीब 50 फीसदी दूषित पानी को बगैर स्वच्छ किए नदियों, झीलों और समुद्र में छोड़ा जा रहा है। यह दूषित पानी पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। यानी अगर हम गटर के पानी पर रिसर्च करें तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहावत बनेगी कि कीचड़ में कमल ही नहीं बिजली भी पैदा की जा सकती है। जरूरत है तो मजबूत इच्छा शक्ति और करप्शन फ्री प्लानिंग की जो जनता और राजनेता दोनों को करनी होगी।
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