हमें ईश्वर से क्या प्रार्थना करनी चाहिए? तब याद आया बचपन का एक पाठ, जिसमें विवेकानंद के जीवन परिचय का छोटा सा वर्णन था। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना में हमेशा बल, बुद्धि, विद्या मांगी थी। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा की पंक्तियां बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार। वास्तव में ना केवल बल, बुद्धि ,विद्या देती हैं। अपितु सभी मनोविकारो को भी दूर कर देती हैं। यही बल, बुद्धि, विद्या शायद हर इंसान की प्राथमिकताओं के केंद्र में है। जिसके पास इन तीनों की उपस्थिति होती है। वह जो चाहे वह बन सकता है। जो चाहे वह कर सकता है।
हम हनुमान जी से क्या सीख सकते हैं? क्या है उनमें ऐसा जो अनुकरणीय है?
प्रतीकात्मक रूप में राम और हनुमान का चरित्र भक्त और भगवान के आगे कुछ और भी हमें सिखाता है। राम जहां आत्मा है वही हनुमान चेतना स्वरूप में है।
मनुष्य की उत्पत्ति के सिद्धांत में जो डार्विन का सिद्धांत है। वह जगजाहिर है। जैसा कि सभी को पता है। हम सभी की उत्पत्ति का सिद्धांत एक ही है। इसी सिद्धांत पर हनुमान की उछल कूद उनकी क्रीडा हमें हमारे अंदर बैठे पशुत्व को ऊपर उठा कर मनुष्य और महामानव बनाने की प्रक्रिया है। हनुमान एक ऐसा चरित्र है जो कि आज ना केवल युवाओं के लिए प्रासंगिक है। अपितु सभी के लिए प्रेरणादायक है। जो मनुष्य राम को समझ सकता है। वही हनुमान को समझ सकता है। आज जब हम किसी की गुलामी दासत्व को स्वीकार नहीं करना चाहते। वही हनुमान का चरित्र एक ऐसा चरित्र है जो सेवक, दास होने की पराकाष्ठा है। लेकिन सच तो यह है कि गुलाम और दास में भी बहुत अंतर होता है। इस महीन अंतर को यदि कोई पार करता है तो वह विध्वंसकारी बनता है। एक तरफ गुलामी दूसरी तरफ दासत्व यह दोनों ही अलग अलग विचारधारा है। क्या आपने कभी महसूस किया है जब एक सद्गुण भारतीय स्त्री विवाह उपरांत अपने पति के घर जाती है। तब वह अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। जब वह बिना किसी दबाव के यह करती है। तब वह स्वयं को दास कहलाना भी पसंद कर लेती है। वही यदि कोई कार्य जबरन करवाया जाता है। तब वह गुलामी का एहसास कराता है। माता सीता ने अपने आप को राम की दासी कहा था। यह भाव प्रेम के साथ-साथ श्रद्धा का रूप भी है। इसी श्रद्धा भाव का दूसरा नाम हनुमान है। जब एक भक्त अपने भगवान के आगे नतमस्तक होता है। तब वह अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है। बिना किसी प्रश्न और बिना किसी संदेह के वह अपना सर्वस्व अपनी भक्ति में लगा देता है। तब भगवान को भी भक्तों के आगे झुकना पड़ता है।
मोक्ष के तीन मार्ग कर्म, ज्ञान और भक्ति मार्ग भगवत गीता में उल्लेखित है।
हनुमान इन तीनों मार्गों की सर्वोच्च शिखर माला है। एक ऐसा उदाहरण है। जो कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग तीनों की त्रिवेणी का संगम। इस संगम में जो डूब जाता है, वह भवसागर से तर जाता है।
जीवन परिचय
केसरी और अंजना के पुत्र हनुमान जी का जन्म मंगलवार चैत्र हिंदू माह की पूर्णिमा को हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर इनके पंचमुख नरसिंह गरुड अश्व वानर और वराह माने गए हैं। वही हनुमान जी को रूद्र का ग्यारहवां अवतार भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे पहले हनुमान जी के दस अवतार हो चुके हैं। इनमें हनुमान, अंजनी पुत्र, वायु पुत्र, सीता शोक विनाशक, रामेष्ट, महाबल, फाल्गुन सखा, अमित विक्रम, लक्ष्मण प्राणदाता, दसग्रीव दर्पण और पिंगाक्ष है। हनुमान शिव जी के ग्यारहवें रुद्र अवतार रूप में है। जो बहुत बलवान, बलिष्ठ और बुद्धिमान है माना जाता है, हनुमान जी धरती पर तब तक रहेंगे जब तक कलयुग रहेगा। कलयुग में हनुमान काली और अंबा भैरव ऐसे देवी-देवताओं में है, जो जागृत देव की श्रेणी में आते हैं। इन देवताओं की भक्ति यदि सरल और सहज है तो उतनी ही कठिन भी यह देवता जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं। उतनी ही जल्दी क्रोधित ही हो जाते हैं। ऐसे में इनकी पूजा में मनुष्य को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसा कुछ कथाओं में भी वर्णन मिलता है।
एक आम इंसान हनुमान जी के चरित्र से क्या सीख सकता है?
शौर्य, पराक्रम और बुद्धि के ज्ञाता हनुमान जी ऐसे देवता हैं। जिन्होंने समस्त ऊर्जा के स्रोत सूरज को भी मुंह में निगल लिया। सच तो यह है कि हनुमान सभी वेदों के ज्ञाता है। वानर स्वरूप धारण करके उन्होंने मनुष्य को यह पाठ पढ़ाया है कि सभी समस्याओं की जन्मभूमि हमारा विचलित मन ही है? किस प्रकार हमें भी अपने चंचल मन पर नियंत्रण रखना चाहिए? जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को वश में कर लेता है। तब वह बहुत कुछ पा सकता है। मानव शरीर में रहकर भी उन्होंने हमें निष्काम, कर्म स्वधर्म का पालन। विवेक, बल, बुद्धि का सकारात्मक पहलू लोक कल्याण की भावना, आत्मबल को प्रज्वलित करना, अंत प्रज्ञा से निर्णय लेना, भक्त भगवान का संबंध, मन इंद्रियों पर नियंत्रण रखना।
निष्काम कर्म।
भगवत गीता में वर्णित निष्काम कर्म योग की अवधारणा का साक्षात उदाहरण है हनुमान जी। एक ऐसा अद्भुत रूप जोकि स्वयं के लिए कुछ नहीं करता, उसकी सभी कार्य बिना किसी स्वार्थ और लोभ लालच के हैं।
स्वधर्म का पालन
स्वधर्म की अवधारणा का भी साक्षात दर्शन होता हैं हनुमान जी में। जिन्होंने अपने कुल की मर्यादा को बनाए रखते हुए स्वधर्म का पालन किया।विवेक, बल ,बुद्धि का सकारात्मक पक्ष जो विवेक बल और बुद्धि हनुमान जी में दिखाई देती है। वैसे कहीं अन्यत्र ही देखने को मिले। वे जागृत अवस्था की प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिनमें विवेक बुद्धि और बल की प्रचुरता है इसी का प्रयोग करके ही, उन्होंने सागर लाघा था।
लोक कल्याण की भावना
हनुमान जी के सभी निर्णय लोकहित जनहित में थे जब जब निर्णय लेने की बारी आई उन्होंने जनता के कल्याण को सर्वोपरि रखा इसी का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि उनकी पूंछ में आग लगने पर भी उन्होंने लंका में सिर्फ धन हानि की, जनहानि नहीं की। चाहते तो उसी समय लंका और लंका वासियों को समाप्त कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
आत्मबल को प्रज्वलित करना
सभी बल में आत्मबल सर्वोपरि है इसे हनुमानजी से बेहतर हम किसी अन्य उदाहरण से कैसे समझ सकते हैं? हम मनुष्यों की स्मरण शक्ति भी कभी-कभी विपत्ति आने पर लुप्त हो जाती है ऐसे में जब कोई हमें मोटिवेट करता है। तब हम अपने आत्मबल को जगा लेते हैं यह आत्मबल ही सबसे बड़ा बल है, जिसमें हनुमान जी को सागर पार करवाया निर्णय लेने में भागीदार बनाया।
भक्त भगवान का संबंध
सबसे पवित्र और अनोखा बंधन होता है भक्त और भगवान का। जहां भक्त अपना सर्वोपरि समर्पित कर देता है। ऐसा भक्त आत्मा और परमात्मा के भेद को मिटा कर एक कर दे। भक्ति की पराकाष्ठा हनुमान से बेहतर और कौन समझा सकता है? मन इंद्रियों पर नियंत्रण लगाना सभी समस्याओं की जड़ हमारा मन है, मन और इंद्रियों के परे जो चले जाए वह हनुमान है।
संकल्प से सिद्धि
मनुष्य के संकल्प ही है। जो उसे सिद्ध पुरुष बना सकते हैं। इसी का संदेश हनुमान जी ने हमें दिया है। हनुमान जी की पूजा से ही एकाग्रता और लक्ष्य प्राप्ति में बाधक सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। जैसे दक्षिण मुखी हनुमान जी की पूजा करने से मृत्यु का भय और चिंता समाप्त होती है। वही वीर हनुमान की पूजा करने से आत्मबल की वृद्धि होती है। सूर्यमुखी हनुमान की पूजा करने से मनुष्य ओजस्वी और प्रकाश मान ज्ञानवान बनता है।
चिंताओं और निराशा का अंत
हनुमान और उनकी आराध्य देव रामचंद्र जी की पूजा करने से मनुष्य समस्त चिंताओं से मुक्त हो जाता है। तभी कहा गया है। हो ही वही जो राम रचि राख
यह नकारात्मक अवधारणा नहीं अपितु वर्तमान में समस्याओं को सुलझाने और भविष्य की चिंताओं से दूर रखने की अवधारणा है। शरणागत की रक्षा जब जब हनुमान जी के सामने दुर्बल, असहाय, कमजोरों या साधु-संतों नें भी मदद के लिए पुकारा। तब तब उसकी मदद करना हमें हनुमान जी से सीखना चाहिए। वे पराक्रमी होकर भी विनम्र हैं। शरणागतो की सहायता करते हैं।
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद् जगत उजियारा।
यही कारण है कि इनका यह यश चारों युगों सतयुग, त्रेता युग ,द्वापर और कलयुग तक फैला है। यहां तक की महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध भूमि में उतरने से पहले हनुमान जी के चिन्ह की ध्वजा अपने रथ पर चढ़ाई थी। जो संदेश था विजय संभव है।
मीन कमठ शूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी।।
जब-जब नाथ सूररन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरी तुम्हई नसायो।।
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में उदित यह पंक्तियां साक्षात इस बात का प्रमाण है कि हनुमान जी ने हमेशा मनुष्यों की ही नहीं देवताओं की भी मदद की है, वे कभी नरसिंह अवतार में तो कभी वामन अवतार में रूप धारण करते हैं। समस्त दुखों को हरने वाले हनुमान जी तभी संकटमोचन कहलाते हैं। ऐसे अविनाशी, अखंड, अजन्मा, अमोघ शक्ति धारी हनुमान जी साधन और साध्य की पवित्रता पर भी पूरा ध्यान रखते हैं। तभी लंका यात्रा के दौरान उन्होंने मात्र अपने कौशल का छोटा सा प्रयोग किया वरना चाहते हो सीता को उसी समय छुड़ाकर ला सकती थें, चाहते तो उसी समय रावण का विध्वंस कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
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