आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्टदलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरिवर काँपै । रोग-दोष जाके निकट न झाँपै ॥ १ ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ २॥
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये ॥ ३ ॥
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लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥ ४॥
लंका जारि असुर संहारे । सियारामजी के काज संवारे ॥ ५ ॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आनि सजीवन प्रान उबारे ॥ ६ ॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे । अहिरावन की भुजा सँवारे ॥ ७ ॥
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बायें भुजा असुर दल मारे । दहिने भुजा संतजन तारे ॥ ८ ॥
सुर नर मुनि आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ॥ ९॥
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ॥१०॥
जो हनुमानजी की आरति गावै । बसि बैकुंठ परमपद पावै ॥११॥
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