Madhavi Latha VS Owaisi: लोकसभा चुनावों को लेकर सभी दल अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर रहे हैं लेकिन कुछ ऐसी सीट है जहां सालों से किसी पार्टी या परिवार का दबदबा बना हुआ है। ऐसी ही एक सीट हैदराबाद मानी जाती है जिसे ओवैसी परिवार गढ़ कहा जाता है। लेकिन इस बार इस सीट पर AIMIM को कड़ी टक्कर मिलने वाली है और इसी वजह से बीजेपी ने एक ऐसा चेहरा चुनावी मैदान में उतारा है जिसकी चर्चा बहुत ज्यादा हो रही है।
पोस्टर में ‘कट्टर हिंदू शेरनी’ लिखा
माधवी लता को बीजेपी ने हैदराबाद सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है और इसके बाद उन्होंने कहा कि ओवैसी का गढ़ जिस मिट्टी से बनी है, उसे तोड़ना मेरे लिए बहुत आसान है। मैं ओवैसी को चुनौती नहीं मानती और साहब की छुट्टी होने वाली है। तेलंगाना में 13 मई को वोटिंग है।
पूरे शहर में माधवी लता की चर्चा है और सड़क किनारे उनके पोस्टर में ‘कट्टर हिंदू शेरनी’ लिखा है।
धर्म की नहीं इंसानीयत की बात
माधवी ने बताया की वह 18 साल से हैदराबाद के लोगों की सेवा कर रही है। कोविड में भी लोगों की बिना किसी भेदभाव के मदद की है। मैं तेलंगाना के लोगों के लिए हमेशा काम करती रहुंगी। मैं हैदराबाद की पसमांदा मुसलमान महिलाओं के साथ काम करती हूं तो इसके साथ ही पूजा पाठ भी करती हूं। मदरसों में बच्चों को खाना खिलाती हूं तो मैं मंदिर भी जाती हूं।
हिंदू एक हो गए तो असद भाई के लिए मुश्किल होगा
पसमांदा मुसलमानों, महिलाओं और मदरसों के लिए काम किया है तो वोट के लिए नहीं किया है। अगर उनको अच्छा लगेगा तो वोट देंगे नहीं तो कोई जबरदस्ती नहीं करेगा। लोग चुनाव में अपने क्षेत्र के विकास के लिए वोट करेंगे। 8 से 10 लाख हिंदू लोग सबको साथ चलने की बात करते है लेकिन अकबरुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग 15 मिनट में आपका काम करा देंगे की बात कहते है।
40 साल से हैदराबाद का विकास नहीं हुआ
ओवैसी परिवार लगातार यहां से जीतकर दिल्ली जाता है लेकिन हैदराबाद में कोई डेवलपमेंट को लेकर कुछ नहीं किया। पुराने शहर में रहने वाली जनता के पास कचरे वाले को देने के लिए महीने के 100 रुपए तक नहीं है और घर में 4-5 दिन का राशन नहीं है। आप ही बताइए फिर वहां रहने वाले लोगों के लिए ओवैसी ने अब तक कुछ नहीं किया।
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माधवी का पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं
माधवी लता 20 साल से वे सोशल वर्क करने में जुटी हैं। शहर के कई NGO और हेल्थ सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के जरिए गरीब परिवारों को सुविधा देने का काम करती हैं। वे लतामा फाउंडेशन और लोपामुद्रा चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रेसिडेंट हैं। उनका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं है और इसके बाद भी उनकी चर्चा बहुत ज्यादा हो रही है।