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चीता प्रोजेक्ट क्यों चिता, चिंता, चिंतन का विषय बन गया?

हम प्रकृति से हैं या प्रकृति हमसे, जल, जंगल, जमीन किसे पसंद नहीं?

अब प्रश्न उठता है। क्या चीतों को भारत का पर्यावरण रास नहीं आ रहा? चीता बिल्ली प्रजातियों में से एक है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति मियोसिस पीरियड में आज से लगभग 5 मिलियन से अधिक वर्षों पूर्व हुई थी। खूबसूरत चीता सबसे तेज भूमि स्तनधारी जीव है। जो मुख्यतः उप सहारा अफ्रीका और एशिया में पाया जाता है। इस समय यह फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया है। इसे आईसीयूएन (ICUN )रेड डाटा लिस्ट में शामिल किया गया है। भारत में यह 70 साल पहले विलुप्त हो चुका था। इसलिए यह विलुप्त प्राय श्रेणी में शामिल है।

वही वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 2 में इसे शामिल किया गया है। भारत में अंतिम चीते की मृत्यु वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में 1947 में हुई थी। इस प्रजाति को 1952 में विलुप्त प्राय घोषित किया गया।

इसके पीछे मुख्य वजह इसका भारत में अत्यधिक शिकार होना था। यही नहीं इसके आवासीय क्षेत्र को भी हमने भारी नुकसान पहुंचाया। जिसकी वजह से यह भारत में विलुप्त प्राय हुआ। साथ ही एशियाई चीते आईसीयू की रेड डाटा लिस्ट में क्रिटिकल एंडेंजर्ड कैटेगरी में शामिल हुए।
 

वर्तमान में सबसे अधिक चीते नामीबिया में है।

इस समय चीते फिर से चर्चा में आ गए हैं। इसके पीछे मुख्य वजह मध्य प्रदेश  श्योपुर राष्ट्रीय उद्यान कूनो नेशनल पार्क में लगातार हो रही इनकी मृत्यु है।
जहां बीते 2 माह के अंदर तीन चीते और तीन शावकों की मौत हो चुकी है। जबकि एक शावक अभी बीमार है। ऐसे में बाकी बचे चीतों की सलामती सरकार, वन विभाग और समाज की जिम्मेदारी बनती है।

कूनो नेशनल पार्क जिसे 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला था। यहां प्रोजेक्ट चीता के तहत नामीबिया से 8 और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते मंगवाएं गए थे। जिनकी लगातार बीमारी व अन्य कारणों से मृत्यु हो रही है। वैसे आपको बता दें, योजना तो दक्षिण अफ्रीका से 50 चीतों को लाने की थी। लेकिन जिस प्रकार से इनकी असामयिक मृत्यु हो रही है। उससे बहुत से सवाल खड़े होते हैं। क्या इन्हें यहां का पर्यावरण रास नहीं आ रहा?
 

सवाल उठता है क्या भारत का  पर्यावरण, पारिस्थितिकी और प्रकृति इनके अनुकूल नहीं है?

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में जिस प्रकार से इन चीतों पर संकट आ रहा है। वह चिंता का विषय है। जिसे लेकर वहां के स्थानीय ग्रामीण भी चिंताग्रस्त हैं। और ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। उन्हें जल्द ही स्वास्थ्य लाभ मिले। एमपी के श्योपुर -मुरैना बॉर्डर पर अवस्थित कूनो नेशनल पार्क प्रोजेक्ट चीता कहीं फेल ना हो जाए। पर्यावरणविद् और पूरे भारत को यही चिंता सता रही है।

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