वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी के दिन माता सीता का जन्म हुआ था। मान्यता है कि इस दिन पुष्य नक्षत्र में पृथ्वी से देवी सीता कन्या के रूप में प्रकट हुई थी। इसीलिए माता सीता का अन्य नाम भूमिजा भी है।
हमारे पौराणिक ग्रंथों में इस दिन का विशेष महत्व है। श्री राम की पत्नी सीता ने राजा जनक के यहां अपना जन्म लिया था।
माना जाता है कि इस दिन राजा जनक को माता सीता खेत में हल जोतते समय मिली थी। इसीलिए इनका अन्य नाम भूमिजा भी है।
तुलसीदास जी की रामचरितमानस में और वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा जनक की कोई संतान नहीं थी। इस दुख से संतृप्त होकर उन्होंने यज्ञ, हवन, अनुष्ठान करवाए। इसी यज्ञ हवन की तैयारी के दौरान उन्हें वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जमीन में हल जोतते समय कुछ फंसा हुआ सा महसूस हुआ। जब उन्होंने वहां खुदाई की तो मिट्टी के पात्र में एक कन्या मिली।
सीता नाम क्यों पड़ा?
इसीलिए जोती हुई भूमि को शास्त्रों में सीता कहा जाता है। ज्योति हुई भूमि और हल की नोंक को सीत कहते हैं। पात्र में कन्या को देखकर राजा जनक भाव विभोर हो गए और उन्होंने इसे अपनी पुत्री स्वरूप स्वीकार किया। सीता के पराक्रम का पता राजा जनक को जल्द ही पता चला। जब उन्होंने बचपन में ही शिव का एक धनुष खेल-खेल में तोड़ दिया। ऐसा धनुष जिसे बड़े-बड़े महा योद्धा नहीं तोड़ सके। तोड़ना तो दूर की बात है, हिला भी नहीं सके। उसे माता सीता ने खेल-खेल में तोड़ दिया। तभी राजा जनक ने यह निश्चय कर लिया था कि ऐसे पुरुष से सीता का विवाह करेंगे। जो इस धनुष को उठा सके अथवा तोड़ सके।
महत्व और विधि
इस दिन पृथ्वी की पूजा का विशेष महत्व है। व्यक्ति को अपनी श्रद्धा अनुसार दान देना चाहिए। अन्न, जल अथवा जो भी उसका सामर्थ्य हो उसके अनुरूप दान करें। मान्यता यह भी है कि इस दिन तीर्थ यात्रा और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। जानकी जयंती पर महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से महिलाओं में ममता, करुणा, दया और सहनशीलता के साथ-साथ सतीत्व व आत्मविश्वास की भी वृद्धि होती है।