Loksabha Chunav 2024: पूरा देश वर्तमान में चुनावी मोड में है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की मशक्कत मेें जुटी है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल भाजपा की राह रोकने की कोशिश में जुटे हैं। आईएनडीआईए गठबंधन, जिसमें कांग्रेस शामिल है, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमलावर है। आईएनडीआईए में विभिन्न दल हैं लेकिन मोदी अपने भाषणों मेंं ज्यादातर कांग्रेस को ही निशाना बना रहे हैं। चुनाव में वैसे तो कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है लेकिन चुनावी परिदृश्य पर भाजपा का हिंदुत्व व राष्ट्रवाद और कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण छाया हुआ है।
लोकसभा चुनाव में यदि भाजपा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की बात कर रही है तो यह उसके लिए कोई नई बात नहीं है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे भाजपा के साथ स्थाई रूप से जुड़ चुके हैं। कांग्रेस भले ही आरोप लगाती आ रही है कि भाजपा का हिंदुत्व और राष्ट्रवाद चुनाव जीतने के लिए है लेकिन भाजपा और उसके समर्थक वोटरों पर इसका कोई असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस भाजपा के हिंदुत्व को धर्म से जोड़ती है जबकि भाजपा के लिए हिंदू एक संस्कृति का परिचायक है। सर्वोच्च न्यायालय भी यह बात कह चुका है। भाजपा के हिंदुत्व में प्रत्येक राष्ट्रवादी भारतीय शामिल है। पार्टी मानती है कि एक हिंदू के रूप मेंं पहचान प्रत्येक भारतीय की सांस्कृतिक नागरिकता है। हिंदू कोई धर्म, संप्रदाय या पंथ नहीं है। यह एक सांस्कृतिक शब्द है। इस प्रकार जहां भाजपा का रुख इस मामले में स्पष्ट है, वहीं कांग्रेस इस मामले में पिछले दस सालों से लगातार दुविधा में दिख रही है।
कांग्रेस और उसके नेता कभी तो हिंदुओं को साथ लेकर चलने की बात करते नजर आते हैं और कभी अपनी पुरानी तुष्टिकरण की नीति पर लौट आते हैं। कभी तो राहुल गांधी मंदिरों मेंं पूजा करके, जनेऊ पहन कर और अपने को ब्राह्मण बताकर हिंदुत्व के प्रति अपना सॉफ्ट रुख दशाने की कोशिश करते हैं तो थोड़े ही समय बाद इसे भूलकर मुस्लिम वोटरों को पार्टी की ओर खींचने का यत्न करने में जुटे जाते हैं। जाहिर है, कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण को छोड़ नहीं पा रही है। कांग्रेस ने हाल में अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया तो वह पीएम मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह समेत तमाम भाजपा नेताओं के निशाने पर आ गई। मोदी बोले कि तुष्टिकरण के दलदल में कांग्रेस इतना डूब गई है कि उससे कभी बाहर नहीं निकल सकती। कांग्रेस का घोषणा पत्र कांग्रेस का नहीं, बल्कि मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र लगता है। उसके हर पन्ने से मुस्लिग लीग की बू आती है। अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस तुष्टिकरण करने वाली पार्टी है। कांग्रेस की चार पीढिय़ां तुष्टिकरण करती रहीं। वह मुस्लिम पर्सनल लॉ को फिर से लाना चाहती है।
दरअसल, कांग्रेस ने अपने घोषणा में अल्पसंख्यकों से वादा किया है कि यदि कांग्रेस को मौका मिलता है तो वह संविधान के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों का आदर करेगी और उन्हें बरकरार रखेगी। पार्टी विदेश में पढ़ाई के लिए मौलाना आजाद छात्रवृत्ति को फिर से लागू करेगी और छात्रवृत्ति की संख्या बढ़ाएगी। कांग्रेस ने प्रत्येक नागरिक की तरह अल्पसंख्यकों को भी पोशाक, खान-पान, भाषा और व्यक्तिगत कानूनों की स्वतंत्रता देने और व्यक्तिगत कानूनों में सुधार को बढ़ावा देने की बात कही है। इसके जवाब मेंं भाजपा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का मुद्दा भी उठा रही है। भाजपा का कहना है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुसलमानों की जो दुर्दशा बताई गई, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? दशकों तक कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन कभी कांग्रेस ने मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के बारे में नहीं सोचा। कांग्रेस हमेशा केवल वोट बैंक के तौर पर ही मुसलमानों का इस्तेमाल करती रही है।
कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम इस घोषणा पत्र से पहली बार नहीं झलका है। उसकी लाइन सदा से ही यही रही है। एक ओर जहां भाजपा के हिंदुत्व मेंं सभी राष्ट्रवादी भारतीयों को समाहित किया जाता है, वहीं कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ अल्प संख्यकों की ही बात करती है। सर्वविदित है कि मुस्लिम शुरू से ही कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक रहे हैं, जो कालांतर मेंं उससे छिटक गए और पार्टी उन्हें फिर से साधना चाह रही है। पार्टी के नेताओं के समय-समय पर आए बयानों से यह स्पष्ट होता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का वह बयान आज भी सबको याद है जिसमें सिंह ने कहा था कि देश के बजट पर पहला हक मुसलमानों का बनता है। गुजरात विधानसभा के चुनाव मेंं सिद्धपुर सीट से कोंग्रेस प्रत्याशी चंदन ठाकोर ने कहा था कि केवल मुसलमान ही कांग्रेस को बचा सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं।
कांग्रेस मुसलमानों के लिए बोलती रहे, तब भी ठीक है लेकिन हिंदुओं को निशाना बनाकर पार्टी ने बड़ी भूल की है। डेढ़ दशक पहले कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम का भगवा आतंकवाद वाला बयान लोग आज भी भूले नहीं हैं। श्रीराम मंदिर में श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह का आमंत्रण ठुकरा कर कांग्रेस ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारी है। कांग्रेस के बड़े नेता बार-बार अपने आलाकमान को समझाते रहे हैं लेकिन उससे पार्टी कोई सबक नहीं ले रही है। वर्ष 2014 में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी को पराजय की समीक्षा का दायित्व सौंपा था। एंटनी ने समीक्षा रिपोर्ट में साफ कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की जो नीति अपनाई, वह उसके लिए घातक साबित हुई।
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हैरानी की बात है, कांग्रेस फिर भी धरातल की स्थिति को समझ नहीं पाई और तुष्टिकरण की राह पर ही चलती रही। कांग्रेस को तुष्टिकरण की नीतियों को छोडक़र राष्ट्र उत्थान व राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अल्पसंख्यक समुदायों को प्रेरित करना चाहिए था। साथ ही राष्ट्रीय समानता, एक भारत-श्रेष्ठ भारत, समान नागरिक अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण आदि विषयों पर उन्हें जागृत करना चाहिए था जिससे राष्ट्र के उत्थान एवं देश की समस्याओं को सुलझाने में उनका योगदान भी अधिकाधिक रहता। लेकिन ऐसा न कर कांग्रेस ने हमेशा तुष्टिकरण को बढ़ावा देकर देश की जनसंख्या को बांटने का काम किया। नागरिकता संशोधन एक्ट का अकारण विरोध भी कांगे्रेस के गले की फांस बन रहा है। पार्टी ने उन तमाम आवाजों को अनसुना करती आ रही है, जिनमेंं हिंदुओं को भी साथ लेकर चलने पर जोर दिया गया। अन्य क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय पार्टियां भी तुष्टिकरण की ही राह पर चलती आ रही हैं। इसके विपरीत भाजपा ने हिन्दुत्व और राष्टवाद की राह पर चलते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में भी फतह हासिल की और अब एक बार फिर इन्हीं मुद्दों को लेकर जनता के सामने है। यानी भाजपा ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है।
वह अपने मुद्दों और विचारधारा पर अडिग है। अब तो श्रीराम मंदिर का निर्माण भी हो चुका है, जो भाजपा के लिए सोने मेंं सुहागे के समान है। समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी आम जन को आकर्षित कर रहा है। मतदाता इस पर तो विचार करेंगे ही कि आजादी के उपरांत 75 सालों में ज्यादातर समय जिन लोगों ने देश पर राज किया है, वह तुष्टिकरण कार्ड खेलकर देश को किधर ले जाना चाह रहे हैं? देश के लोग भाजपा के सोलह साल के शासन (अटल सरकार के कार्यकाल को मिलाकर) पर गौर करेंगे, जिसमें राष्ट्र उत्थान, विकसित भारत, श्रेष्ठ भारत, विश्व गुरु भारत के सपने पर फोकस किया गया है। बड़ा सवाल है कि हिंदुत्व व राष्ट्रवाद और तुष्टिकरण की नीति में से किसका असर होने जा रहा है? प्रश्न यह भी है कि मतदाता राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व और मोदी के नाम पर वोट देंगे या फिर कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण की बदौलत कोई नई राह निकालने में सफल हो पाएगी? जनता क्या सोच रही है, यह 4 जून को साफ हो जाएगा।
(महेश चंद गुप्ता,पूर्व प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय)
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