मरु महोत्सव 2024 : राजस्थान सांस्कृतिक विविधताओं वाला प्रदेश है। यहां के मेले तीज त्योहार सभी देखने वाले होते हैं। साथ ही यहां के क्षेत्र विशेष में मनाए जाने वाले महोत्सव की तो बात ही निराली है। राजस्थान का जैसलमेर जिला अपने धोरों, कुएं, बावडि़यों और हवेलियों के लिए विश्व विख्यात है। तो वहीं यहां का मरु महोत्सव भी विश्व विख्यात है। विश्व विख्यात मरू महोत्सव का भव्य आगाज जैसलमेर में बुधवार को हो गया। जिसकी शुरूआत भव्य शोभायात्रा में लोक लहरियों की गूंज एवं विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ हुई। वैसे विश्व विख्यात मरू महोत्सव-2024 की विधिवत शुरुआत आज 22 फरवरी गुरुवार को जैसलमेर से हुई और ये महोत्सव पूरे तीन दिन तक यानी 24 फरवरी तक चलने वाला है। जिसमें राजस्थान के अनेकों रंग देखने को मिलेगें। लेकिन आज हम आपको उसी जैसलमेर में जन्मे एक कवि एक कलाकार की तीन खुबसूरत कविताएं सुना रहें हैं जिन्होनें देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपना नाम कमाया। जी हां हम बात कर रहें हैं जैसलमेर के लाल ‘मुकेश बिस्सा’ की। जैसलमेर के कवि मुकेश बिस्सा ने अपनी रचनाओं से सबका दिल जीत लिया है। उनका नाम इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी शामिल है। फरवरी 2022 में ईवा जिन्दगी ने देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी विशेषांक ई मैगजीन प्रकाशित की। जिसमें दुनिया के 10 देशों के अनेक लेखकों को शामिल किया गया जिसमें एक मुकेश बिस्सा थे। साथ ही मुंबई में मुकेश बिस्सा को हिन्दी अकादमी काव्य भूषण सम्मान और रामकृष्ण राठौड़ से भी सम्मानित किया गया।
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1. “मैं नारी हूँ”
न समझो मुझे अबला नादान
न समझो मुझे खोई हुई पहचान
मै धारण किये हुए हूँ अभिमान
मैं संभाले हुए हूँ स्वाभिमान
मैं अर्जित किये हूँ ज्ञान
मैं रखती हूं सबका मान
मैं खेलती हूँ कई पारी
मुझमें समायी है खुद्दारी
हल करती बला सारी
मैं हूँ पुरुषों से भी भारी
में हूँ भारत की नारी हूँ
पुरुष प्रधान जगत में मैंने
अपना लोहा मनवाया
जो काम मर्द करते आये
हर काम वो करके दिखलाया
मै आज स्वर्णिम अतीत सदृश
फिर से पुरुषों पर भारी हूँ
मैं आधुनिक नारी हूँ
मैं मां भी हूँ
मैं बेटी भी हूँ
बहन भी मैं हूँ
मैं हर किरदार में हूँ
मैं घरद्वार में हूँ
मैं आकाश में हूँ
मैं पाताल में भी हूँ
मैं हिमालय से समतल तक हूँ
पुरुषों के हर कदम साथ हूँ
मैं शिक्षिका भी हूँ
मैं चिकित्सक भी हूँ
मैं वैज्ञानिक हूँ
लेखिका,व्यापारी हूँ
खेलों से दूर नहीं हूँ
औऱ खेल मैदानों तक हूँ
मै माता,बहन और पुत्री हूँ
मैं लेखक और कवयित्री हूँ
विश्व के हर पद पर हूँ
मैं भारत की नारी हूँ
मैं नवयुग की वाहक हूँ
मैं देश का भविष्य हूँ
मैं आधुनिक नारी हूँ
2. “फर्ज इंसानियत का”
मनुष्य हो अगर तो
मनुष्यता का फर्ज निभाइये।
जन्म मिला है मनुष्य का
इसको व्यर्थ न गंवाइए।
घमण्ड करना न धन का
ये माटी का ढेला है।
फिसल गया हाथ से अगर
तो रोकर न पछताइये।
जिंदगी का सफर है अनोखा
अनजाना सा एहसास हैं।
काम करो प्रतिदिन ऐसा
सफर मज़ेदार बनाइये।
जन्म हुआ है इस धरा पर
मौत भी फिर निश्चित है।
मौत से पहले ही इंसान
मौत से न डर जाइये।
जीवन के सफर की
मंजिल ईश्वर वास है।
सत्यमार्ग पर आगे बढ़कर
अपनी मंजिल को पाइए।
रहें या न रहें इस संसार में
नाम अपना अमर कर जाइये।
बस जाओ सबके दिल में
पावन कर्म कर जाइये।
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3. “हो गया कैसा ये शहर”
पल पल में बदलते
यहां लोग हैं
जितने तो मौसम
भी न बदलते
सोता हुआ एक
शहर है
अंधेरे में
डूबा हुआ
उदासी के साये में
धुंध के आगोश में
बाहर है उजाला
भीतर है अंधेरा
हर कोई तलाश
में एक मतलब की
न किसी का ईमान
न ही कोई धर्म है
जिंदगी हर कोई
यूँ ही जिये जा रहा है
न तो सुबह सुहानी
न ही सुहानी शाम है
बैचैन सा हर आदमी
फिरता है मारा मारा
संबंधों को ताक पर
जीवन बसर किये जा रहे है
लोग मिलते हैं आपस मे
मशीन की जानिब
मन करता है
बदल दूं
अपने इस शहर को
कुछ खुशी बांटूं
कुछ ले लूं गम
जज्बा इंसानियत का
हर दिल को ला के दूं
प्यार की खुशबू
उपवन में फैला दूं
वो पुराना शहर
वापिस ले के आऊँ
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