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त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी बाड़मेर सीट, सट्टा बाजार के भाव से BJP को लगा झटका

Phalodi Satta Bazar: त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी बाड़मेर लोकसभा सीट पर इस बार जातिगत फैक्टर भी फेल होता नजर आ रहा है। इस बार का चुनाव 2014 की तर्ज पर लड़ा गया है और निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने अपने समाज के साथ-साथ मूल ओबीसी, सामान्य और अल्पसंख्यक वोटर्स में सेंध लगाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। लेकिन सट्टा बाजार ने इस बार भाटी की जीत का दावा तो कर रहा है लेकिन जीत आसान नहीं होगी।

सबसे ज्याद वोटिंग प्रतिशत से बदलेंगे समीकरण

इस सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग होने के कारण समीकरण बदलते जा रहे हैं। क्योंकि मतदान प्रतिशत बढ़ने का कारण लोगों का ज्यादा उत्साह रहा है। आठ विधानसभा सीटों में से कई सीटों पर भाटी बीजेपी और कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। त्रिकोणीय मुकाबला और दूसरी युवाओं में वोटिंग को लेकर बहुत ज्यादा क्रेज देखने को मिला है।

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त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी बाड़मेर सीट

बीजेपी-कांग्रेस को निर्दलीय भाटी ने अच्छी टक्कर दी है और ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि भाटी खुद के समाज के साथ अन्य जातियों के वोटों में सेंधमारी करके अच्छी बढ़त बनाई है। बीजेपी के कोर वोटर्स भी भाटी के साथ नजर आए। इससे बीजेपी को नुकसान हुआ है और 4 जून को इसका खुलासा होगा।

कांग्रेस नेताओं ने किया भाटी का समर्थन

शिव विधानसभा में पूर्व विधायक अमीन खान ने खुले में रविंद्र सिंह भाटी को समर्थन देने से पूरा माहौल ही बदल गया। कांग्रेस में भीतरघात का फायदा भाटी को बहुत ज्यादा हुआ है और वहीं दूसरी ओर बीजेपी के नेताओं ने भी भाटी का सहयोग किया ऐसे दावे किए जा रहे हैं।

नेगेटिव माहौल का हुआ नुकसान

बीजेपी के कैलाश चौधरी के खिलाफ नेगेटिव माहौल बना हुआ था और वह अपने ही नेताओं को मनाने में सफल नहीं हो सके। वहीं कांग्रेस में बेनीवाल को टिकट देने से स्थानीय नेताओं का एक धड़ा पूरे चुनाव में दूरी बनाए रखा। लेकिन भाटी के साथ ऐसा नहीं हुआ और इसी वजह से उनकी जीत का दावा ज्यादा होने लगा।

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वोटिंग का असर

राजस्थान में सबसे रोचक मुकाबले वाली सीट पर सबसे अधिक वोटिंग (74.25) हुई। यहां पिछले लोकसभा चुनाव में 73.30 फीसदी वोटिंग हुई थी लेकिन इस बार वोटिंग में मामूली बढ़त जीतने वाले उम्मीदवा के लिए बहुत फायदेमंद होगी।पिछले विधानसभा चुनाव में शिव सीट से भाजपा से टिकट नहीं मिलने से भाटी बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे थे और जीत भी हासिल करी थी।

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