22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है और इसको लेकर बहुत बड़े स्तर पर तैयारियां की जा रही है। इस कार्यक्रम को लेकर हर दिन कई प्रकार की खबरे सामने आ रही है और अभी तक इस तरह की खबरें थीं कि PM नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मुख्य यजमान होंगे। लेकिन अब प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकालने वाले पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़, राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराने वाले पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने बहुत बड़ी जानकारी देते हुए कहा है कि PM मोदी मुख्य यजमान नहीं होंगे।
प्राण-प्रतिष्ठा में पीएम मोदी यजमान होंगे और इसी बात को लेकर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा था। लेकिन अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गई है कि रामलला प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के मुख्य यजमान गृहस्थ ही हो सकते हैं और इसी वजह से यह फैसला किया गया है। PM मोदी प्रतीकात्मक यजमान होंगे क्योंकि वह गृहस्थ नहीं है और इसी बात को लेकर कई धर्मगुरू भी सवाल खड़े कर रहा था।
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श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य डॉ. अनिल मिश्रा और उनकी पत्नी मुख्य यजमान हो सकती है। ये दोनों ही संकल्प, प्रायश्चित और गणेश पूजा कर 7 दिवसीय अनुष्ठान की यजमानी करने का काम करेंगे। आधिकारिक तौर पर अभी इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई है।
राममंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकालने वाले गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि यजमान को सपत्नीक शामिल होना होता है। कोई गृहस्थ ही प्राण प्रतिष्ठा और पूरे 7 दिन की पूजा में हिस्सा ले सकेगा। पीएम मोदी गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य अनुष्ठान में शामिल तो होंगे लेकिन मुख्य यजमान नहीं बनेंगे।
साल 2020 में राम मंदिर शिलान्यास के यजमान डॉ. रवींद्र नारायण सिंह और उनकी पत्नी थीं। पीएम मोदी भी इस अनुष्ठान में बैठे थे।
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प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ 22 जनवरी को गर्भगृह में रहकर मुहूर्त के दौरान कुशा और श्लाका खींचेंगे। बाकी की पूजा का मूख्य यजमान ही संपन्न करेंगे। पीएम मोदी यजमान ही हैं लेकिन वे बस प्रतीकात्मक हैं। 11 दिन तक यम नियम का पालन करेंगे और इस दौरान वह दिन में एक समय फलहारी करेंगे।
यजमान कोई भी बन सकता है लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी नियम है। यजमान का मतलब जिसके मन में भगवान का पूजा पाठ करने की इच्छा हो। शास्त्रों के अनुसार जो भी यजमान होता है वह गृहस्थ जीवन से होना चाहिए। अगर पति पत्नी दोनों जीवित हैं तो यह बहुत अच्छा होता है और दोनों अलग है तो इसका भी उपाय है। बताया जाता है कि भगवान राम ने जब अश्वमेध यज्ञ किया था तो माता सीता की मूर्ति बनवाई गई थी तब श्रीराम अनुष्ठान में बैठ पाए थे।
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