हितों का टकराव क्यों होता है?
क्या आपके साथ भी ऐसा होता है होता है? ऐसा घर, ऑफिस, रिश्तो से लेकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी देखने को मिलता है। सच कहें तो कोई भी इससे अछूता नहीं। कांफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट, क्या हो इसका समाधान? अक्सर कुछ चीजें तनाव देती हैं। हम प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं। इससेे जुड़े हुए होते हैं। जिनका हम पर व्यापक प्रभाव भी पड़ता है।
कभी-कभी ऐसा होता है हमें उस चीज का भान भी नहीं होता और हम ऐसे विवाद में पड़ जाते हैं। जिनसे हमारा दूर-दूर तक कोई संबंध भी नहीं होता या फिर हमारी छोटी सी भूल किसी को हर्ट कर सकती है। हमारी कोई और भूल, हमारे शब्द, जो अनजाने में निकल जाते हैं। किसी और को आहत कर सकते हैं, पता भी नहीं चलता और सामने वाला विचलित हो जाता है। या फिर अपमानित और असहज महसूस करता है, तो ऐसे में क्या है समाधान?
अगर वह बहुत महत्व की नहीं है, तो उन पर बहुत ज्यादा ध्यान ना दें। किसी की अगर छोटी सी गलती है, तो उसे बड़प्पन समझ कर माफ कर दें। वह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उतपात। ऐसे में यह आपका बड़प्पन है कि आप सामने वाले की छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज कर दें। दूसरा जहां चार बर्तन होंगे। वह बजेंगे ही, इसका सबसे अच्छा समाधान पहला तो यह है कि चीजों को इग्नोर करें।
ऐसे में सभी को अपने अपने अधिकार क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। याद रखिए जहां अधिकार खत्म होते हैं। वहां से कर्तव्यों की शुरुआत होती है। ऐसे में हमारा संविधान यह कहता है कि अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी पूर्ण रूप से निर्वाह करें।
अब बात आती है अध्यात्म की
जी हां, कुछ लोग इतने विचलित और स्ट्रेस लेकर चलते हैं कि उनका तनाव दूसरों पर भी प्रभाव डालता है। वह अपने घर के तनाव को ऑफिस में ले जाते हैं। और इसका गुस्सा अपने कलीग्स पर उतारते हैं या फिर ऑफिस का गुस्सा अपने घर में उतारते हैं। क्या यह उचित है? नहीं ,इसके लिए अहस्तक्षेप की नीति अपनानी चाहिए। हमें अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक हितों, कार्यों को अलग अलग रखना चाहिए।
इतना ही नहीं। अगर ऑफिस में आपका बॉस आपकी वाइफ या हसबैंड भी है तो भी आपको यह मानकर चलना चाहिए कि वहां वह बॉस है और उनका सम्मान करना आपका दायित्व बनता है। वह बॉस है। अगर उन्होंने आपका अपमान किया है तो आप इसके लिए संवाद कर सकते हैं। लेकिन इस विषय को सामूहिक चर्चा का विषय ना बनाएं। इससे ना केवल कार्य क्षमता प्रभावित होती है। अपितु ऑफिस का माहौल भी खराब होता है। कार्य में गुणवत्ता की कमी आती है। ईर्ष्या, द्वेष और बहुत सी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं।
ऐसे में क्या हो समाधान? कुछ वक्त स्वयं के साथ गुजारे
यदि आप दूसरों की बातों को लेकर तनाव में आते है। अवसाद और बेचैनी का अनुभव करते हैं। तो जरूरी है कि आप कुछ समय अपने आप को दें, अपने आप से बातें करें। मेडिटेशन, योगा और ध्यान लगाएं। मन को शांत रखें। आप अपने विचारों को लिख कर भी तनाव मुक्त हो सकते हैं। लिखने से मस्तिष्क एक्टिव रहता है और पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है। इतना ही नहीं यह आपको शांत और धैर्यवान बनाता हैं।
निंदक नियरे राखिए
दोहा तो आपने सुना ही होगा। अगर आपको अपने अंदर सुधार करना है तो अपने आसपास कुछ ऐसे लोग अवश्य रखें, जो समय-समय पर आपकी निंदा कर सके। ऐसा करने से आप समय-समय पर अपनी गलतियों कमियों को सुधार पाएंगे। आपको याद रखना चाहिए। दुनिया में बड़े से बड़े महान इंसान की भी आलोचना हुई है। क्योंकि कोई भी पूर्ण रूप से सर्वगुण संपन्न नहीं होता। स्वयं की त्रुटियों को सुधार कर आप क्रिटिकल एनालिसिस कर सकते हैं। यह आपके व्यक्तित्व को निखारेगा।
मेल-जोल बढ़ाएं
जब मनुष्य अलग-अलग प्रकार के लोगों से मिलता है तब उसकी सोच का दायरा बढ़ता है। मन मस्तिष्क खुलता है। ऐसे में अपनी सोच और सामाजिकता का दायरा बढ़ाए। स्वयं से विपरीत विचार वाले दोस्तों से भी दोस्ती करें। जरूरी नहीं आप ही सही हो।
पूर्वाग्रह को त्यागे
कभी-कभी हम सामने वाले के प्रति इतना अधिक ईर्ष्या से भर जाते हैं। मन ही मन उटपटांग सोचने लगते हैं। जबकि सामने वाले के मन में ऐसा कुछ नहीं है। ऐसे में कोई भी गलत अवधारणा ना बनाएं। ऐसा करने से आप में नकारात्मकता का संचार होगा। स्वयं की उन्नति में इतना समय लगाइए। जिससे नकारात्मकता पर हावी ना हो।
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