Prehistoric Paintings: कला कोई भी हो वह किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में वक़्त नहीं लगाती है। और बात जब चित्र कला की हो तो फिर चंद लकीरों से एक बेजान कैनवास पर एहसास से लबरेज़ तस्वीर उकेरना अपने आप में बहुत मायने रखता है। भारत में पेंटिंग का इतिहास प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Paintings) जितना ही पुराना है। प्रागैतिहासिक शब्द प्राग और इतिहास से मिलकर बना है जिसका मतलब है- इतिहास से पूर्व का युग। यानी वह ज़माना जब कोई भाषा, काग़ज़ और लिखने वाला मौजूद नहीं था, तब से इंसान ने अपने भीतर के जज़्बात को चित्र की शक्ल देना शुरू कर दिया था।
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प्रीहिस्टोरिक युग (Prehistoric Paintings) अर्थात करोड़ों साल पहले जब मानव गुफाओं मे रहता था, जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरता था, जब वह पत्थरों को रगड़कर आग पैदा करना सीख रहा था, ठीक उसी समय वह गुफाओं में चित्रकारी करने का हुनर भी सीख रहा था। जिसे आज हम रॉक पेंटिंग, प्रीहिस्टोरिक पेंटिंग, भित्ति चित्र या शैल चित्र भी कहते हैं।
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इस प्राचीन कला (Prehistoric Paintings) का पहला सबूत 1878 ई. में इटली और फ्रांस में मिला। ये पेंटिंग आमतौर पर चट्टानों पर चित्रित की जाती थी। इन्हें पेट्रोग्लिफ्स भी कहा जाता है। भारत में पहली प्रागैतिहासिक पेंटिंग मध्य प्रदेश की भीमबेटका की गुफाओं में पाई गई थीं। इसके अलावा मिर्ज़ापुर, आदमबेटका, महादेव, उत्तरी कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के क्षेत्रों में भी ऐसी प्राचीन गुफाएं मौजूद हैं। ज्यादातर पेंटिंग्स में शिकार करते हुए चित्र, तथा हाथी, चीता, गैंडा और जंगली सूअर के चित्र मिलते हैं, जिन्हें लाल, भूरे और सफेद रंगो का प्रयोग करके दिखाया गया है।
कुल मिलाकर आदिमानव ने अपने वजूद को बचाने की कोशिश में जो कुछ अनुभव किया उसे गुफाओं और चट्टानों पर उकेर दिया। ये प्राचीन पेंटिंग्स (Prehistoric Paintings) उस समय की जीवन शैली, धार्मिक भावनाओं और संवेदनाओं का अनूठा संगम है जो आज के इस वैज्ञानिक युग में पत्थरों पर बयां की गई कहानियों का प्रीहिस्टोरिक पिटारा खोलती हैं। जब मनुष्य के पास कोई गैजेट नहीं था तब उसके पास केवल इमोशंस थे।
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ये पेंटिंग्स (Prehistoric Paintings) हमें यह दर्शाती हैं कि किस तरह से पाषाण काल में इंसान ने अपनी संवेदनाओं को प्रकट करने के लिए कुदरत का सहारा लिया था। यानी हम भले ही कितनी ही तरक्की कर ले लेकिन कुदरत को अपने साथ लेकर चलना इंसान और इंसानियत के लिए हमेशा से ही फायदेमंद रहा है। हमें अपनी नई पीढ़ी को इस अद्भुत कला से ज़रूर रूबरू करना चाहिए। ताकि हम यह जान सके और गर्व कर सके कि हमारे पुरखे कला के कितने बड़े क़दरदान थे।
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