जयपुर। संसद से निष्कासित और कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाने पर भले ही सभी विपक्षी दल एकजुट नजर आ रहे हैं, लेकिन यह एकजुटता 2024 के लोकसभा चुनाव तक बनी रहेगी। हालांकि, यह कह पाना मुश्किल है क्योंकि नेतृत्व के सवाल पर सभी दल बंटे हुए हैं। कई बड़ी विपक्षी पार्टियां अपना-अपना दावा ठोकती रही हैं। लेकिन, राहुल का पास कई ऐसे दांव पेंज हैं जिनको वो अपना लें तो सबको मात दे सकते हैं।
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ममता बनर्जी के साधे
गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी दलों का तीसरा मोर्चा बनाने में सबसे आगे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपने साथ कर रखा है। वहीं, तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष केसीआर भी इसी तरह की मुहिम चलाते रहे हैं। ये दोनों नेता समान विचारधारा वाले दलों के साथ बातचीत करते रहे हैं।
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बदल गई राहुल की भूमिका
अब बदली हुई राजनीति परिस्थितियों में राहुल गांधी 2024 के चुनावी परिदृश्य से दूर नजर आ रहे हों लेकिन उनकी भूमिका कम होती नहीं। 136 दिनों तक 12 राज्यों में 4080 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा करने वाले राहुल ने असलियत में एक लंबी सियासी लकीर खींची है। अब वेा पप्पू नहीं बल्कि सियासी पंडित की भूमिका में दिखने लगे हैं। हालांकि, वो मां सोनिया गांधी से कोसों हैं।
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ये है विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती
नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ अपनी लड़ाई में आज विपक्ष के सामने यही एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है कि सबको एकसाथ एक डोर से कैसे बांधा जा सके। चूंकि कांग्रेस विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है और राहुल अभी भी उस पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, इसलिए उनकी यह ड्यूटी बनती है कि वो विपक्षी नेताओं के साथ लगातार बातचीत करें और 1977 जैसी विपक्षी एकता के सूत्रधार बनें। अन्यथा उनकी भारत जोड़ो यात्रा विपक्ष जोड़ो मुहिम के बिना अधूरी रह जाएगी।
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ये हैं राह में रोड़ा
मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष हों लेकिन सभी विपक्षी दलों के बीच सर्वस्वीकार्यता राहुल गांधी को लेकर ही है। इसलिए सभी दलों को एकजुट करने की मुहिम भी राहुल को ही चलानी होगी। उन्हें इस रास्ते में आने वाली मुश्किलों को राजनीतिक कौशल और विवेक से दूर करना होगा।