जयपुर। Ramadan 2024 : भारत में मुस्लिमों का शासन सैंकड़ों सालों तक रहा है। ऐसे में Ramadan 2024 के मौके पर हम आपको एक ऐसी मुस्लिम महिला के बारे में बता रहे हैं जिसने पुरूषों की तरह शासन किया और अपनी ताकत की छाप छोड़ी। यह महिला मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर की 20वीं बेगम मेहरुन्निसा उर्फ नूरजहां (Noorjahan) थी जो बेहद खूबसूरत महिला होने के साथ ही इतिहास की सबसे शातिर मुस्लिम महिला भी रही हैं। नूरजहां इतनी काबिल थी कि उसने जहांगीर के नाम पर 16 साल तक हिंदुस्तान की मुगलिया सल्तनत की गद्दी संभाली। नूरजहां ही पहली मुगल बेगम थी जिसके नाम के सिक्के चलाए गए और शाही फरमान जारी किए गए। इतिहासकारों के अनुसार नूरजहां बेहद साहसी महिला थी। वो इतनी शातिर शासक भी थी कि जिसने सत्ता के लिए भाइयों को ही आपस में लड़ावा दिया। नूर जहां ने अपनी बेटी को मल्लिका-ए-हिंदुस्तान बनाने के मुगलों को राजनीति की बिसात पर मोहरों की तरह यूज किया। हालांकि, उसकी ये इच्छा अपने भाई असफ खान की वजह से ही पूरी नहीं हो सकी।
मेहरुन्निसा उर्फ नूरजहां के पिता ग्यासबेग ईरान में गरीबी से जूझ रहे थे जो अकबर के दरबार में शरण पाने के लिए अपनी बेगम और दो बेटों के साथ हिंदुस्तान आए थे। इसी दौरान 31 मई 1577 को कंधार में उनकी बेगम ने एक बच्ची को जन्म दिया जो आगे चलकर नूरजहां बनी और हिंदुस्तान की मालकिन बनी। भारत पहुंचने पर ग्यासबेग को अकबर के दरबार में नौकरी मिली। बड़ी होने पर खूबसूरत मेहरुन्निसा की पहली शादी 1594 में मुगल सरकार के एक पूर्व सिख सरकारी अधिकारी से की गई। फिर वो बंगाल चली गईं, जो उस समय पूर्वी भारत का संपन्न राज्य था। उसने वहीं अपनी इकलौती संतान को जन्म दिया।
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हालांकि, नूरजहां के पति पर जहांगीर के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप लगे तो जहांगीर ने बंगाल के गवर्नर को नूरजहां के पति को आगरा में अपने शाही दरबार में लाने का आदेश दिया। हालांकि, नूरजहां के पति गवर्नर के आदमियों के साथ युद्ध करते हुए मारे गए। इसके बाद विधवा नूरजहां ने जहांगीर के महल में शरण ली। नूरजहां की शादी 25 मई 1611 जहांगीर से हुई। नूरजहां जहांगीर की 20वीं और आखिरी बेगम बनीं। फिर 1620 के आसपास जहांगीर शराब और अफीम की लत के चलते दमे का रोगी हो गया था। इस वजह से उसने सत्ता की चाबी नूरजहां को सौंप दी। नूरजहां ने अपना पहला शाही फरमान जारी किया, जिसमें कर्मचारियों की जमीन की सुरक्षा की बात कही गई थी। उसने मुगलों और अपने पिता ग्यासबेग के खानदान के बीच रिश्ते मजबूत करने के लिए 1612 में अपने भाई असफ खान की बेटी अर्जुमंद बानो उर्फ मुमताज महल का निकाह शाहजहां से करवाया था।
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इतिहासकारों के अनुसार नूरजहां मुगलों के शासनकाल में पहली ऐसी महिला थीं, जो पुरुषों की तरह फैसले लेती थीं। उसने साल 1617 में चांदी के सिक्के जारी किए गए, जिन पर जहांगीर के बगल में नूरजहां का नाम छपाया था। अदालत के एक दरबारी के मुताबिक जब नूरजहां ने उस शाही बरामदे में आकर सबको चौंका दिया था, जो सिर्फ पुरुषों के लिए आरक्षित था। नूरजहां ने रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ जमकर आवाज उठाई जिनमें शिकार करना हो, शाही फरमान और सिक्के जारी करना हो, सार्वजनिक इमारतों का डिजाइन तैयार करना हो, ग़रीब औरतों की मदद के लिए नए फैसले लेने हों या हाशिये पर पड़े लोगों की अगुवाई करनी हो ये सब काम किए। नूरजहां ने अपने शासनकाल में एक बेहद ताकतवर महिला की जिंदगी जी।
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