Ramadan and Pregnancy : इस्लाम एक ऐसा मजहब जो कि पूरी तरह से प्रेक्टिकली है। रमजान का महीना चल रहा है। ऐसे में बंदा दिन भर भूखा प्यासा रहकर अल्लाह की इबादत करता है। महिलाएं भी सुबह जल्दी उठकर सेहरी बनाती है और रोजा रखती है। लेकिन क्या गर्भवती महिलाएँ भी रोजा (Ramadan and Pregnancy) रख सकती हैं। इनके लिए इस्लाम में क्या नियम कायदे हैं। इसी पर हम बात करेंगे। रमजान में इस तरह की रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहे और बाकी हजरात तक भी ये अहम जानकारी शेयर करते रहे।
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गर्भवती महिला रोजा रख सकती है क्या?
(Ramadan and Pregnancy)
इन दिनों करीब 12 से 14 घंटे तक बिना कुछ खाए पीए रहना पड़ रहा है। ऐसे में बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को रोजे नहीं रखने की छूट दी गई है। रमजान में प्यास की वजह से शरीर में डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी हो जाती है। ऐसे में कोख में पल रहे बच्चे पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। खासकर अगर मोमिन औरत की पहली तिमाही है तब तो स्थिति बिगड़ने का जोखिम ज्यादा होता है। इसलिए अपने बच्चे और अपनी सेहत के लिए आपको रोजा नहीं रखना चाहिए।
प्रेगनेंसी में रोजा रख लिया तो क्या करें?
(Roza in Pregnancy Facts)
हालांकि Pregnancy में औरतों को रोजे छोड़ने की रियायत दी गई है, लेकिन फिर भी कई बार गर्भवती महिलाओं का दिल नहीं मानता और वो रोजा रख लेती है तो फिर उनको क्या करना चाहिए ताकि कोख में पल रहे बच्चे को रोजे की वजह से कोई नुकसान न पहुंचे। तो Pregnant Women सेहरी और इफ्तार में विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर और अन्य पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थ खाएं। सेहरी में आपको खास तौर पर फाइबर वाले रेशेदार फल, हरी सब्जियां, पनीर, दाल, दही आदि लेने हैं। इसके अलावा विशेषज्ञ से अपने लिए रमजान का डाइट चार्ट तैयार करवा लें। इफ्तार में बहुत ज्यादा चटपटा ऑयली या मसालेदार खाना खाने से बचना चाहिए। इससे आपको गैस, एसिडिटी आदि कई दिक्कतें हो सकती हैं।
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कोख में पल रहे शिशु के बारे में सोचे
इस्लाम में हामिला यानी गर्भवती औरतों को बहुत रियायत दी गई हैं। मसलन रमजान में इनको रोजे नहीं रखने होते हैं। साथ ही अगर किसी हामिला औरत ने रोजा रख लिया है तो उसे दिन भर अपनी कोख में पल रहे बच्चे के मूवमेंट पर नजर रखनी होगी। बीपी कम ज्यादा हो या जरा भी थकान महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर साहब से संपर्क करें। वैसे हमारी सलाह यही है कि गर्भवती महिलाएं रोजे के बजाए दीगर इबादात जैसे तस्बीह, कुरान शरीफ की तिलावत या बैठकर नमाज पढ़ सकती है। अल्लाह अपने बंदों को कभी भी तकलीफ नहीं देना चाहता है। मौला ने तो मोमिन की सहूलत के लिए शरीयत में कई आसानीयां दे रखी हैं।