Ramadan Facts: रमजान का महीना चल रहा है। सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहने वाले मुस्लिम बंधु इस महीने में अल्लाह को राज़ी करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। लेकिन केवल भूखे प्यासे रहने से रोजे का हक अदा नहीं होता हैं। इसके लिए आपको शरीर के साथ ही आत्मा का भी रोजा रखना होता है। चूंकि रोजे का मकसद इंसानों में तकवा पैदा करना है, इसलिए रोजे में केवल शरीर को दुख देने का कोई मतलब नहीं है। रोजे का मकसद (Ramadan Facts) इबादत के जरिए अल्लाह का कुर्ब हासिल करना है। हम आपको वो सभी काम बताने वाले हैं जिनको करने के बिना रोजा (Ramadan Facts) पूरा नहीं होता है।
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रोजे में ये काम जरूर करें
(Ramadan Facts)
1. नमाज
रोजे के दौरान नमाज पढ़ना बहुत जरूरी है। गैर रमजान में भी नमाज माफ नहीं है तो रमजान में तो रब नमाज का सवाब कई गुना बढ़ा देता है। अल्लाह तआला फरमाते है कि जिसने नमाज को जान बूझकर छोड़ दिया कि मानो उसने कुफ्र को हासिल कर लिया। नमाज के बिना मोमिन का कोई भी अमल कुबूल नहीं होता है। ऐसे में बिना नमाज के रोजा रखना बेकार है। रोजे के साथ नमाज जरूर पढ़ें।
2. तहज्जुद की नमाज
रमजान की रातों में तहज्जुद की नमाज का भी काफी महत्व है। रात के तीसरे पहर में पढ़ी जाने वाली नफ्ली नमाज को तहज्जुद की नमाज कहते हैं। हदीस में है कि जिसने रमजान की रातों में सवाब की नियत से तहज्जुद की नमाज अदा की, अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ कर देते हैं, चाहे वो समंदर के झाग के बराबर हो।
3. कुरान की तिलावत
रमजान के दिनों में ही कुरआन शरीफ आखिरी रसूल पर नाजिल हुआ था। ऐसे में रोजे की हालत में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत करनी चाहिए। जिसको हिंदी आती है वह कुरान को समझकर हिंदी तर्जुमें में पढ़ें, ताकि इसके पैगाम को समझा जा सके। जब तक आप अरबी कुरान को हिंदी में नहीँ समझेंगे तब तक इसकी हैबत दिलों में कैसे उतरेगी भला।
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4. दान पुण्य यानी जकात खैरात
रमजान के दिनों में ज्यादा से ज्यादा सदका और खैरात करने के लिए कहा गया है। इसी महीने में जकात अदा करनी चाहिए। अल्लाह तआला को रमजान में रोजे के दौरान अपने बंदे की सखावत यानी दान देने की आदत बहुत पसंद है। इस्लाम में खाना खिलाने और गरीबों को जकात देने पर बहुत सवाब है।
5. दुआ, जिक्र, तौबा अस्तगफार
रमजान में रोजे रखने के साथ कसरत से दुआ का भी एहतिमाम करना चाहिए। दुआ से पहले और बाद में दुरूद शरीफ जरूर पढ़ें ताकि दुआ की हिफाजत हो सकें। अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाते है कि रोजे की हालत में और खास तौर से इफ्तार के पहले मांगी गई दुआ हमेशा कुबूल की जाती है। तौबा और अस्तगफार भी करते रहे। यानी अपने गुनाहों पर रब से माफी तलब करते रहे।