Ramadan ka Kaffara: मुसलमानों का पवित्र महीना माहे रमज़ान चल रहा है। तीस दिन के रोजे के बाद ईद मनाई जाती है। कई बार मुस्लिम बंधु रोजे रखने की हालत में नहीं होते हैं या बीमारी और सफर की वजह से रोज़े छूट जाते हैं तो ऐसे लोगों के लिए इस्लाम में रियायत दी गई है। कज़ा और कफ्फारा (Ramadan ka Kaffara) करके छूटे गए रमजान की भरपाई की जा सकती है। लेकिन शर्त है कि केवल वही लोग इसका फायदा ले सकते हैं जो वाकई में किसी सही कारण की वजह से रमजान नहीं रख पाए हैं। कई बार लोग ऐसे नियमों का फायदा उठाकर रमजान से बचने की कोशिश करते हैं जो कि सरासर गलत है। हम आपको छूटे गए रोज़े का कफ्फारा का तरीका बता रहे हैं। इसे आप अपने दोस्तों यारों रिश्तेदारों के साथ शेयर कर सकते हैं।
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क्या है रोजे का कफ्फारा ?
रोजा इस्लाम के पांच Pillors में से नमाज के बाद सबसे अहम स्तंभ है। रमजान फर्ज होने के साथ ही इबादत और बरकत में भी इजाफा करता है। कफ्फारा का मतलब प्रायश्चित से समझ सकते हैं। मतलब अगर किसी के शरीर में रोजे की हालत में ताकत और कुव्वत देने वाली चीज चली गई हो या किसी मुस्लिम ने रोजे की हालत में बीवी के साथ हमबिस्तरी कर ली हो तो ऐसी स्थिति में कफ्फारा अदा करना लाजमी है। इसके लिए रमजान महीने के बाद ईद के महीने में आपको लगातार 60 दिनों तक रोजे रखने होंगे या फिर 60 दिन तक गरीबों को खाना खिलाना होगा।
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रमजान का कफ्फारा कैसे अदा करें ?
अगर कोई बंदा रोजा रखने की स्थिति में नहीं है तो इसके बदले आप किसी गरीब को खाना खिला सकते हैं। लेकिन वह खाना उसी लेवल का हो जो आप रोज खाना पसंद करते हैं। ऐसे ही अगर किसी शख्स का रोजा छूट जाता है और इसे पूरे करने से पहले उसकी मौत हो जाती है और ऐसे में रमजान की कजा अदा करना जरूरी नहीं है। हां लेकिन किसी शख्स ने गैर रमजान में मन्नत के रोजे रखे हों और बीच में ही उसकी मौत हो जाए तो उसके वारिस यानी बेटे बेटियों को कजा अदा करना जरूरी है। इसी तरह बीमारी में छूटे गए रोजे की कजा वह बंदा तंदुरुस्त होने के बाद अदा कर सकता हैं। वही सफर के दौरान छूटे गए रोजो को रमजान के बाद पूरा किया जा सकता है।