Ramlala Pooja Vidhi: अयोध्या के राम मंदिर में आज 22 जनवरी (सोमवार) को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हैं। पूरे देश में उत्साह का माहौल हैं। आज दोपहर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी और शाम के समय में श्री राम ज्योति जलाई जाएगी। यदि आप अयोध्या जा नहीं पा रहे हैं तो अपने घर पर प्रभु राम की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सकते है। यहां हम आपको रामलला के पूजन की विधि बता रहे हैं। चलिए जानते है –
भगवान राम की पूजा विधि
(Shri Ram Pooja Vidhi)
रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के मौके पर रामलला की मूर्ति या तस्वीर को एक लकड़ी की चौकी पर अपने घर के मंदिर में स्थापित करें। इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। अब जल से भगवान राम का अभिषेक करें। उनको वस्त्र पहनाएं और चंदन तिलक करें। साथ ही अब फूल, माला से श्रृंगार करें। रामलला को अक्षत्, फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य, तुलसी के पत्ते, गंध आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही आप सुगंधित लाल, पीले, सफेद पुष्प भी अर्पित कर सकते हैं।
श्री राम को मिठाई जैसे रसगुल्ला, लड्डू, हलवा, इमरती, खीर आदि का भोग लगाएं। घर पर बने भोजन का भोग लगा सकते हैं। पूजा के दौरान राम नाम का जप अवश्य करें। श्री राम चालीसा का पाठ करें। आप एकश्लोकी रामायण भी पढ़ सकते हैं। आरती के लिए घी, सरसों तेल के दीपक और कपूर यूज करें।
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भगवान राम का पूजा मंत्र
ऊं रामचंद्राय नमः
ॐ रां रामाय नमः
ऊं नमो भगवते रामचंद्राय
श्री राम जय राम जय जय राम।
एकश्लोकि रामायण
आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्। बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनं पश्चाद्रावणकुंभर्णहननमेतद्धि रामायणम्।।
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भगवान राम की आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्। नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्। पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्। रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं। आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्। मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों। करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली। तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।