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Ramzan ka Jumma : रमजान के जुमे के दिन क्या दुआ पढ़ें, मुसलमान जान लें

Ramzan ka Jumma : माहे रमजान का आज तीसरा जुम्मा है। इस्लाम में जुमे की अहमियत हम पहले ही बयान कर चुके हैं। रमजान के पाकीजा महीने के जुम्मे का तो और भी ज्यादा महत्व है। 29 मार्च 2024 को भारत में रमजान का तीसरा जुम्मा है। जुमे के दिन प्यारे आका पर दरूद ओ सलाम भेजने का खास महत्व है। जुम्मे के दिन नबी ए पाक पर दरूद शरीफ पेश करने से गुनाह माफ होते हैं। हम आपको रमजान के जुमे (Ramzan ka Jumma) के दिन पढ़ने के लिए बेस्ट दुआ बता रहे हैं। हमें भी अपनी दुआओं में शरीक रखें।

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रमजान के तीसरे जुमे के दिन क्या पढ़ें?

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है कि जो शख्स जुमे के दिन इस दरूद शरीफ को 80 बार पढ़ लेगा तो उसके 80 साल के गुनाह माफ कर दिए जाएंगे। इस खास दरूद शरीफ को नमाजे अस्र के बाद कसरत से 80 बार पढ़ेंगे तो अस्सी साल के गुनाह माफ हो जाएंगे।

“Allahumma Salli Ala Muhammadin Nin Nabiyyil Ummiyyi Wa’ala Aalihi Wasallim Taslima”

अल्लाहुम्मा सल-ली आ ला मुहम्मदी निन ना-बिय-यिल उम-मियाई वा आ ला आ ली-ही वा-सल-लिम तस्ली-माँ

O Allah bless Muhammad, the unlettered Prophet, and his family and grant them best of peace.

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दरूद शरीफ क्यों पढ़ते हैं?

जब भी मुसलमान के आगे नबी ए पाक मुहम्मद साहब का जिक्र होता है, या उनका नामे मुबारक आता है तो उसको दुरूद शरीफ पढ़ना जरूरी है। ऐसा करने से अल्लाह की रहमत उस पर नाजिल होती है। किसी भी दुआ को मांगने से पहले दुरूद शरीफ पढ़ लेने से दुआ की हिफाजत हो जाती है। मतलब वो दुआ फिर कुबूल होके ही रहती है। उसे दुरूद ए पाक की हिफाजत मिल जाती है। यही वजह है कि मुसलमान दुआ मांगने या किसी भी वजीफे को करने से पहले और बाद में दुरूद शरीफ जरूर पढ़ते हैं।

जुम्मे के दिन दुरूद पढ़ने के फायदे

दुरूद पढ़ना मतलब आप अपने नबी के लिए दुआ करते हैं। दरूद शरीफ पढ़ने के बहुत फायदे हैं। लेकिन खास जुम्मे के दिन ये दुरूद शरीफ अगर आप शाम चार बजे की नमाजे अस्र के बाद पढ़ें तो बेहतर होगा। सबसे छोटा दुरूद शरीफ है कि नबी ए पाक का नाम लिया जाए। यानी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही सबसे छोटा दुरूदे पाक है। दुरूद शरीफ की फजीलत हदीस में बयान की गई है। बंदे का बुरा समय खत्म हो जाता है। गुनाह नेकियों में बदल दिये जाते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जियारत नसीब होती है। अल्लाह हम सबको कसरत से दुरूदे पाक पढ़ने की तौफीक नसीब अता फरमाएँ।

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