Ramzan me Aatishbaji: दुनिया भर में इस समय रमज़ान का पाकीजा महीना चल रहा है। ऐसे में अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में रमजान के पहले दिन एक बड़ी घटना हो गई है। चार लोगों ने इफ्तार के समय अजमेर दरगाह (Ramzan me Ajmer Dargah Aatishbaji) के सामने अचानक आतिशबाजी करना शुरु कर दिया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि इस्लाम में आतिशबाजी (Ramzan me Aatishbaji) को लेकर क्या व्यवस्था है। दारूल उलूम देवबंद ने तो फतवा जारी करते हुए कहा है कि इस्लाम में पटाखे चलाना और आतिशबाजी करना हराम है। चलिए इस बारे में थोड़ा और जान लेते है कि रमजान के पाकीजा महीने में अगर कोई मुस्लिम बंधु पटाखे चलाकर अपनी खुशी का इजहार करना चाहता है तो उसे इसका आखिरत में क्या सिला मिलेगा?
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भारत में मुसलमानों की सबसे बड़ी शिक्षण संस्था दारूल उलूम देवबंद का कहना है कि इस्लाम में आतिशबाजी (Ramzan me Aatishbaji) के लिए कोई जगह नहीं है। इसे इस्लाम में हराम करार दिया गया है। चूंकि पटाखें फोड़ने से पैसे समय और पर्यावरण तीनों की बर्बादी होती है, अत इस्लाम में ऐसी किसी भी चीज को मना फरमाया है। नबी ए करीम ने आतिशबाजी करने से सख्त मना फरमाया है।
भारत में मुस्लिम बंधु शरीयत को दरकिनार करके शबे बारात हो या रमजान (Ramzan me Aatishbaji) पटाखे चलाना नहीं भूलते हैं। जबकि इस्लाम में आतिशबाज़ी मना है। क्योंकि इससे पैसों की बर्बादी तो होती है साथ में ध्वनि प्रदूषण और किसी के जख्मी होने या आग लगने का खतरा भी बना रहता है। लेकिन मुस्लिम बंधुओँ में दीनी जहालत यानी इस्लामी अज्ञानता के कारण खुशी के मौकों पर आतिशबाजी करने की परंपरा बनी हुई है।
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भारत में मुसलमान शबे बारात के त्योहार पर खूब आतिशबाजी (Shabe barat me Aatishbaji) करते हैं। हालांकि मौलाना लोग कई बार कह चुके हैं कि पटाखे फोड़ने की इस्लाम में सख्त सजा है। इससे अल्लाह नाराज होते हैं। रहमत के फरिश्ते उस इलाके में दाखिल नहीं होते जहां पर आतिशबाजी और फिजूलखर्ची की जाती है।
इस्लाम में शादी बिल्कुल साधारण तरीके से करने का हुक्म है। जबकि मुस्लिम भाई अपनी शादियों में अनाप शनाप पैसा बहाते हैं। गैर इस्लामिक तरीके से गाजे बाजे के साथ ढोल ढमाके और आतिशबाजी (Ramzan me Aatishbaji) करते हैं। ये सब इस्लाम में मना है। हालांकि कुछ पढ़े लिखे मुस्लिम आजकल शादियों में डीजे और आतिशबाजी से परहेज करने लग गए हैं। अल्लाह हम सबको ऐसे गुनाह से बचने की तौफीक (कृपा) नसीब अता फरमाएँ।
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