Ramzan me Gibat : अक्सर मुसलमानों को कहा जाता है कि गीबत नहीं करना चाहिए। गीबत एक ऐसा गुनाह है जिसका मतलब आप अपने मरे हुए भाई का गोश्त खा रहे हैं। गीबत का मतलब चुगली होता है। रमजान में महीने में गीबत से बचना चाहिए। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “अगर किसी बन्दे को ये मालूम हो जाए कि गीबत करना कितना बड़ा गुनाह है और उसकी सजा कितनी सख्त है तो बेशक वो तमन्ना करेगा कि जुबान कभी खोले ही नहीं” गॉसिप करना ज्यादातर लोगों की आदत होती है, लेकिन रोजे रखकर ये गुनाह करना बहुत गलत बात है। Ramzan me Gibat करने की क्या सख्त सजा है ये हम आपको बताएंगे। अल्लाह हम सबको चुगली करने से बचाए और जुबान का सही इस्तेमाल करने की तौफीक नसीब करें।
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रमजान में गीबत न करें
बहुत से लोग रोजा रखने के बाद भी बुरी बातों से नहीं बचते और एक दूसरे की गीबत करने का मजा लेते हैं। खासकर जब दो औरतें मिलती हैं तो वह तीसरी की बुराई शुरू कर देती है। अल्लाह के रसूल ने इरशाद फरमाया है कि अपने आप को गीबत व चुगलखोरी से बचाओ क्योंकि यह जिना से भी ज्यादा बुरी आदत है। जो बंदा जिना करके तौबा कर लेता है तो अल्लाह उसकी तौबा कुबूल फरमाता है, लेकिन गीबत करने वाले को जब तक वह शख्स जिसकी गीबत की गई हो माफ न करे तो उसकी तौबा कुबूल की ही नहीं जाती है। रोजे की हालत में कभी किसी की पीठ पीछे बुराई (Ramzan me Gibat) न करें वरना आपको रोजे का सवाब नहीं मिलेगा उल्टा गीबत करने का अजाब मिलेगा।
अपने मुर्दार भाई का गोश्त खाना
ग़ीबत को इस्लाम में चुगलखोरी के रूप में बड़ा पाप माना गया है। क़ुरआन में गीबत की तुलना मुर्दार भाई का गोश्त खाने से की गई है। अल्लाह तआला कहते है कि मेरा मकसद तुम्हे भूखा-प्यासा रखना नहीं है। नबी ए पाक का इर्शाद है कि कई रोज़ेदार ऐसे हैं जिनको भूख व प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं होता है। ये इशारा उन्हीं लोगों की तरफ है जो रोज़े की हालत में भी बुराई से दूर नहीं रहते। इस सिलसिले में एक और हदीस है कि रोज़ेदार सुबह से शाम तक खुदा की इबादत में रहता है, जब तक किसी की पीठ पीछे बुराई करता है तो अपने रोज़े को किसी कपड़े की तरह खुद के हाथों से फाड़ देता है। लिहाजा रोजे में गीबत करने से बचें, औऱ अगर कोई गीबत करे तो वहां से फौरन दूर चले जाए। क्योंकि गीबत सुनने वाला भी उतना ही गुनाहगार है जितना गीबत करने वाला।
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रमजान की अमहियत को समझे
अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “अगर किसी बन्दे को ये मालूम हो जाए कि रमजान क्या है और रमजान की फजीलत कितनी बड़ी है, तो बेशक वो तमन्ना करेगा कि बरसों-बरस रमजान ही रहे।” लेकिन आज के मुसलमान के दिल पे जंग लग गया है। तभी तो रोजे रखकर भी वह गुनाह से दूर नहीं हो पा रहा है। जब शैतान जंजीरों में कैद है फिर भी गुनाह करने की अपनी आदत से मोमिन बाज़ क्यों नहीं आ रहा है। दरअसल वह अपने नफ्स यानी इंद्रिय का गुलाम हो चुका है। अल्लाह हमें अपने नफ्स को कुचलने और गीबत से बचने की तौफीक अता करें।